श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन

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Organizing Shrimad Bhagwat Katha
Organizing Shrimad Bhagwat Katha

जयपुर। चैत्र नवरात्र के उपलक्ष्य में हरिनाम संकीर्तन परिवार के तत्वावधान में झोटवाड़ा की शिल्प कॉलोनी के तेजाजी मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में व्यासपीठ से अकिंचन महाराज ने तीसरे दिन ध्रुव और प्रहलाद जन्म की कथा का विशेष रूप से श्रवण कराया। प्रारंभ में हरीश कुमावत, मनीषा कुमावत, सत्यनारायण कुमावत ने व्यासपीठ की आरती उतारी।

अकिंचन महाराज ने कहा कि धु्रव और प्रहलाद ने पूर्व जन्मों के प्रारब्धवश कठिन परिस्थितियों का सामना किया लेकिन वर्तमान में श्रेष्ठ कर्मों के कारण उच्च स्थान को प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि भगवान की भक्ति सच्चे मन से और अगाध निष्ठा से करनी चाहिए। भक्ति बचपन से ही हो तो ही श्रेष्ठ है। वृद्धावस्था में शरीर की इंद्रिया जवाब दे जाती है। शरीर को रोग भी घेर लेते हैं। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि वे बचपन से बच्चों को धार्मिक संस्कार दें। संयोजक कृष्ण स्वरूप बूब ने बताया कि कथा आठ अप्रेल तक प्रतिदिन दोपहर दो से शाम सात बज तक होगी।

ध्रुव चरित्र प्रसंग में उन्होंने कहा कि भक्ति की कोई उम्र नहीं होती। जब पांच वर्षीय ध्रुव को सौतेली मां ने फटकारा, तब उनके मन में वैराग्य जाग उठा। वे भगवान के भजन के लिए जंगल की ओर चल पड़े। किसी के समझाने पर भी नहीं रुके। ध्रुवजी ने नारद जी को अपना गुरु बनाया और उनके बताए मार्ग पर चले। छह महीने की कठोर तपस्या के बाद प्रभु ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिया। यदि मन में प्रभु के प्रति सच्ची लगन और प्रेम हो, तो प्रभु अवश्य मिलते हैं।

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