जयपुर। श्री सुनील सागर युवा संघ, भारत एवं विजयामती वूमेंस फैडरेशन भारत व श्री चंद्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के तत्वावधान में व चतुर्थ पट्टाधीष आचार्य सुनील सागर महाराज के आषीर्वाद से श्रमण परंपरा के पुनरुद्धारक, दिगंबर जैन आचार्य परंपरा के जनक आचार्य आदिसागर महाराज (अंकलीकर) के 110वें आचार्य पदारोहण दिवस को झोटवाड़ा, पटेल नगर स्थित श्री चंद्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर में धूमधाम से मनाया। इस मौके पर अभिषेक व विधान के आयोजन हुए। आयोजन में काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।
सुनील सागर युवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष विकास बड़जात्या ने बताया कि सुबह नित्य नियम पूजा के बाद साजों के बीच पूजा हुई। इसके बाद आचार्य आदिसागर विधान वैभव शास्त्री ने भक्ति भाव से विधान करवाया। इस दौरान धन्य-धन्य आज घड़ी कैसी सुखकार है…आया मंगल दिन मंगल अवसर…रोम-रोम पुलकित हो जाए,जब गुरुवर के दर्षन पाए…जैसे भजनों की स्वर लहरियों पर श्रद्धालु भाव-विभोर होकर नाचे।
इस मौके पर आचार्य आदिसागर महाराज के व्यक्तित्व च कृतित्व पर विचार रखते हुए वीरचंद बड़जात्या, प्रवीण बड़जात्या वैषाली नगर, अभिषेक बड़जात्या झोटवाड़ा व पूनम चांदवाड़ आदि ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण उपरांत भारत में श्रमण परंपरा सुदीर्घ समय तक जीवंत रही, परंतु 13वीं सदी के बाद विदेशी आक्रमणों के चलते यह परंपरा लगभग 700 वर्षों तक दुर्लभ हो गई। 20वीं सदी के प्रारंभ में अंकली (महाराष्ट्र) में जन्मे आचार्य आदिसागर महाराज ने इस परंपरा को पुनः प्रतिष्ठित किया। उन्होंने अनेक तपस्वी महामुनियों को दीक्षा देकर संयम पथ पर अग्रसर किया, जिनमें आचार्य महावीरकीर्ति, आचार्य विमलसागर, गणाचार्य कुंथुसागर, गणिनी आर्यिका विजयमती माताजी जैसे अनेक महान संत सम्मिलित हैं।
आचार्य श्री महान तपस्वी, ज्ञानी व ध्यानी थे। आचार्यश्री की तपष्चर्या श्रेष्ठ थी,वे 7दिन में एक ही बार आहार ग्रहण करते थे। वे इस युग के श्रेष्ठ आचार्य थे। उन्होंने आगे कहा कि आचार्यश्री का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणादायी है।