जयपुर। प्राचीन दुर्गा माता मंदिर में शारदीय नवरात्रा के अवसर पर अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को सुबह 7 बजे से सवा सात बजे के बीच घट स्थापना की जाएगी। जिसके बाद वैदिक मंत्रोंच्चारण के साथ ही अखंड ज्योति जलाई जाएगी। मंदिर महंत महेंद्र भट्टचार्य ने बताया कि प्रथम शारदीय नवरात्रा पर ब्रह्म मुहूर्ते पर वैदिक मंत्रोंच्चार के साथ अखंड ज्योत प्रज्जवलीत कि जाएगी और मंगल घट स्थापना की जाएगी।
जिसके बाद दुर्गा सप्तशती के पाठ प्रारंभ होगे। गुरुवार को प्रथम नवरात्रा पर शैल पुत्री के रुम में माता की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाएगी और 9 दिनों तक ब्रह्माचारिणी,चंद्र घंटा,कूष्माण्डेति,स्कंदमाता,कात्यायनी,कालरात्री,महागौरी और सिद्धीदात्री नवदुर्गा के रुप में माता रानी की पूजा-अर्चना की जाएगी। मंदिर परिसर में पूरे नौ दिनों तक सप्तशती के पाठ किए जाएगे।
आरितारी व गोटा चुनरी पोशाक कराई जाएगी धारण
शारदीय नवरात्रा में माता रानी का प्रतिदिन विशेष श्रृंगार कर उन्हे ऋतु पुष्पों से सजाया जाएगा और अलग-अलग प्रकार के नौ दिनों तक भोग अर्पण किए जाएगे। इसी के साथ आरितारी व गोटा चुनरी की पोशाक धारण कराई जाएगी। शारदीय नवरात्रा के दसवें दिन मंदिर परिसर में माता रानी की विशेष झांकी सजाई जाएगी और शाम को मंदिर में विशाल ध्वजा चढ़ाई जाएगी। इस पूर्व ध्वजा यात्रा का आयोजन किया जाएगा।
सप्तमी पर दुर्गापुरा स्थित मंदिर में मेले का आयोजन किया जाएगा। जिसके बाद रात्रि को माता रानी के समक्ष भजन संध्या का आयोजन होगा। अष्टमी के दिन संध्या काल में पूर्ण आहूति का आयोजन किया जाएगा। नवमी के दिन माता रानी की विशेष पूजा— अर्चना की जाएगी और दसमी को सुबह घट उत्थापन के साथ कन्या भोजन के बाद शारदीय नवरात्रा का समापन होगा।
शारदीय नवरात्रा में डोली में सवार होकर आ रही है माता रानी
जयपुर। नवरात्रि का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। वैसे तो साल में 4 बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि,शानरदीय नवरात्रि और दो गुप्त नवरात्रि। इन दिनों में भक्त माता रानी की विशेष पूजा-अर्चना करते है और उपवास रखते है। इन दिनों तक में माता रानी की विशेष कृपा भक्तों पर बनी रहती है। वैसे तो माता रानी की सवारी शेर है। लेकिन नवरात्रों में जब माता रानी धरती पर आती है तो उनकी सवारी बदल जाती है। इस बार माता रानी डोली पर सवार होकर धरती पर आ रही है।
शारदीय नवरात्रि पूजन विधि
पं नीरज शर्मा ज्योतिष चार्य ने बताया कि नवरात्रि के पहले दिन व्रत करने वाला संकल्प ले और आपने सामर्थ्य के अनुसार दो,तीन या पूरे 9 दिन उपवास करने का संकल्प ले। इसके बाद मिट्टी की वेदी में जो बोए और उस पर कलश स्थापित करे। इसके पश्चात मांगलिक कार्य से पहले प्रथम पूज्य गणेश जी महाराज की विधि- विधान से पूजा- अर्चना करे । कलश को भी भगवान गणेश का रुप माना जाता है। इसलिए विधि –विधान से कलश स्थापित करते समय उसकी पूजा करे।
कलश को गंगाजल से साफ करने के बाद ही उसे स्थापित करें। इसके बाद सभी देवी- देवाताओं का आवाहन करें और कलश में सात तरह के अनाज,कुछ सिक्के और मिट्टी रखे । कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाए। कलश पर कुल देवी की तस्वीर स्थापित करें। इसके पश्चात अखंड ज्येाति प्रज्वलित करें । माता रानी की विधि – विधान से पूजा –अर्चना करने के बाद प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती के पाठ करें। माता रानी की आरती करने के बाद सभी को प्रसाद वितरण करें।
ये रहेगा घटस्थापना का शुभ मुहूर्ते
घटस्थापना मुहूर्त – सुबह 06.15 – सुबह 07.22 (अवधि – 1 घंटा 6 मिनट)
कलश स्थापना अभिजित मुहूर्त – सुबह 11.46 – दोपहर 12.33 (अवधि – 47 मिनट)
कन्या लग्न प्रारम्भ – 3 अक्टूबर 2024, सुबह 06:15
कन्या लग्न समाप्त – 3 अक्टूबर 2024, सुबह 07:22″
शारदीय नवरात्रि तिथियां
3 अक्टूबर 2024, गुरुवार मां शैलपुत्री (पहला दिन) प्रतिपदा तिथि
4 अक्टूबर 2024, शुक्रवार मां ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन) द्वितीया तिथि
5 अक्टूबर 2024, शनिवार मां चंद्रघंटा (तीसरा दिन) तृतीया तिथि
6 अक्टूबर 2024, रविवार मां कुष्मांडा (चौथा दिन) चतुर्थी तिथि
7 अक्टूबर 2024, सोमवार मां स्कंदमाता (पांचवा दिन) पंचमी तिथि
8 अक्टूबर 2024, मंगलवार मां कात्यायनी (छठा दिन) षष्ठी तिथि
9 अक्टूबर 2024, बुधवार मां कालरात्रि (सातवां दिन) सप्तमी तिथि
10 अक्टूबर 2024, गुरुवार मां महागौरी (आठवां दिन) दुर्गा अष्टमी
11 अक्टूबर 2024, शुक्रवार महानवमी, (नौवां दिन) शरद नवरात्र व्रत पारण
12 अक्टूबर 2024, शनिवार मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन, दशमी तिथि (दशहरा)
नवरात्रि की कलश स्थापना के लिए, इन बातों का ध्यान रखें
कलश स्थापना के लिए सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद साफ़ कपड़े पहनें.
कलश स्थापना के लिए मिट्टी या तांबे का कलश लें.
कलश स्थापना के लिए एक साफ़ और पवित्र स्थान चुनें, जो पूर्व या उत्तर दिशा में हो.
कलश स्थापना के लिए मिट्टी को किसी पात्र में डालकर गीला करें और उसमें जौ बोएं.
कलश में पानी, गंगाजल, सिक्का, रोली, हल्दी गांठ, दूर्वा, सुपारी डालें.
कलश में 5 आम के पत्ते रखकर उसे ढक दें.
कलश पर नारियल रखें, जिसे लाल कपड़े में लपेटकर मोली से बांधा हो.
कलश के मुंह पर मौली बांधें और कुमकुम से तिलक लगाएं.
कलश को एक चौकी पर स्थापित करें.
कलश को रोली और चावल से अष्टदल कमल बनाकर सजाएं.
देवी मां के मंत्रों का जाप करें और कलश में जल चढ़ाएं और धूप दीप करें.
मंदिर में मां दुर्गा की प्रतिमा रखें और सभी देवी-देवताओं का आह्वान करें.
सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें और सभी मां दुर्गा समेत सभी देवी-देवताओं की आरती करें.