जयपुर। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी के रूप में मनाई जाएगी। इस दिन से चातुर्मास की विधिवत शुरुआत होगी, जो 1 नवम्बर 2025 को देवउठनी एकादशी तक चलेगा।
ज्योतिषाचार्य बनवारी लाल शर्मा ने बताया कि देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं, और अगले चार महीनों तक धरती के सभी मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। इस अवधि में विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, मुंडन, दीक्षाग्रहण, वास्तु प्रवेश जैसे शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस कालखंड को चातुर्मास कहा जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि का प्रारंभ 5 जुलाई को शाम 6:58 बजे से होगा और इसका समापन 6 जुलाई की रात 9:14 बजे होगा।
उदया तिथि के अनुसार व्रत 6 जुलाई को ही रखा जाएगा। इस दिन साध्य योग रात्रि 9:27 बजे तक रहेगा, उसके बाद शुभ योग, त्रिपुष्कर योग और रवि योग का भी संयोग बन रहा है। ये सभी योग अत्यंत पुण्यदायक माने जाते हैं। लक्ष्मी-नारायण की आराधना से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसी दिन से सन्यासियों का चातुर्मास्य व्रत आरंभ होता है। वे एक ही स्थान पर निवास करते हुए चातुर्मास की साधना, अध्ययन और ध्यान करते हैं।
संयम, साधना- शिव आराधना का समय है चातुर्मास:
बनवारी लाल शर्मा ने बताया कि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु सृष्टि का संचालन भगवान शिव को सौंप देते हैं। इसलिए सावन मास में शिव पूजन विशेष फलदायक होता है। इस अवधि को आत्मिक शुद्धि, साधना, व्रत, कथा, भागवत, कीर्तन एवं सत्संग के लिए उत्तम समय माना जाता है।
चातुर्मास के दौरान सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश पृथ्वी पर अपेक्षाकृत कम मात्रा में पहुंचता है, जिससे वातावरण में आर्द्रता अधिक हो जाती है। यही कारण है कि इस मौसम में जलजनित बीमारियां, कीट-पतंगे, जीवाणु एवं विषाणु अधिक सक्रिय हो जाते हैं। इसलिए इस समय खानपान और जीवनशैली में विशेष संयम रखना आवश्यक होता है।
चातुर्मास में आने वाले प्रमुख पर्व:
रक्षाबंधन, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, शरद पूर्णिमा, करवा चौथ, धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा।