जेकेके में संस्कृति सेतु उत्सव में हुई साहित्य में राम के भाव पर चर्चा

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जयपुर। जवाहर कला केन्द्र की ओर से कला संसार मधुरम के अंतर्गत दो दिवसीय आयोजन संस्कृति सेतु उत्सव की शनिवार को शुरूआत की गई। दो दिन तक चलने वाले इस उत्सव में राम से जुड़े कला व साहित्य के विभिन्न आयामों पर चर्चा हुई। उत्सव के पहले दिन एक तरफ जहां साहित्य में राम के भाव पर साहित्यकारों ने अपनी राय सबके सामने रखी, वहीं दूसरी तरफ अनोखी विश्व प्रसिद्ध बिसाऊ की रामलीला पर तैयार की गई फिल्म की स्क्रीनिंग की गई। फिल्म के जरिए बिसाऊ की रामलीला के विभिन्न अनछुए पहलुओं को दिखाने का प्रयास किया गया।

राम अविराम में राम की बात

संस्कृति सेतु उत्सव के पहले दिन सबसे पहले कृष्णायन में संवाद प्रवाह का आयोजन किया गया। इस दौरान ‘राम अविराम’ सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार चंद्र प्रकाश देवल (पद्मश्री अलंकृत), लेखक व साहित्यकार सलीम ख़ां फ़रीद ने साहित्य में राम भाव पर चर्चा की। इस सत्र के मॉडरेटर शिक्षाविद् डॉ. विशाल विक्रम सिंह रहे। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार लोकेश कुमार सिंह “साहिल”, जवाहर कला केंद्र की अतिरिक्त महानिदेशक प्रियंका जोधावत व अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे। संवाद सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार चंद्र प्रकाश देवल ने कहा वाल्मिकी की रामायण में राम को एक नायक के तौर पर ग्रहण किया गया, राम में वे सारी संभावनाएं थी जो एक नायक में होनी चाहिए। राम केा ब्रह्मत्व स्वरूप तो बाद में आया था।

राम में करुणा है.. जो सबके मन को छूती है। जो लोग विरह से गुजरे हैं, राम उनके लिए आदर्श हैं। वाल्मिकी की रामायण ने राम को प्रस्तुत किया और तुलसीदास की रामचरिस मानस ने उन्हें जन-जन तक पहुंचाया। राम अविराम हैं, हजारों साल से विभिन्न संस्कृतियों, विभिन्न भाषाओं से होते हुए अब भी निरंतर मन में समाए हुए हैं। साहित्यकार सलीम ख़ां फ़रीद ने कहा कि संसार में जितने भी नाम हैं, उनमें सबसे श्रेष्ठ नाम राम हैं। राम के नाम से किए जाने वाले अभिवादन का सबसे श्रेष्ठ उत्तर स्वयं राम-राम ही हैं।

बिसाऊ की ये राम लीला, है बहुत खास

उत्सव के तहत दूसरे सत्र में विश्व प्रसिद्ध बिसाऊ की मूक रामलीला पर तैयार की गई फिल्म की स्क्रीनिंग की गई। फिल्म में इस मूक रामलीला के बारे में कई अहम जानकारी दी गई। रजनीकान्त आचार्य के निर्देशन में तैयार की गई इस फिल्म में बताया गया कि मूक रामलीला ने बिसाऊ की गलियों से विश्वपटल का रास्ता तय किया है, पारम्परिक वेशभूषा में तैयार मुखौटे लगाए पात्र अभिनय से भावों को प्रदर्शित करते हैं। इस रामलीला के इतिहास के बारे में बताया गया कि राजस्थान के झुंझुनूं जिले का छोटा सा कस्बा बिसाऊ अपनी इस रामलीला के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यह 165 साल पुरानी है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय एक महिला क्रांतिकारी साध्वी जमना ने इस मूक रामलीला की आधारशिला रखी थी। उनका उद्देश्य देश के प्रति प्रेम की भावना जागृत करना था। बिना किसी संवाद मूक रूप से अभियन करना था। समय के साथ यह रामलीला लोगों के दिलों में बस गई है और विश्व में प्रसिद्ध हो गई है।

आज होगा सुमिरन में ध्रुवपद गायन

उत्सव के दूसरे दिन रविवार को रंगायन में सायं 6:30 बजे सुमिरन में पंडित प्रशांत मल्लिक और निशांत मल्लिक ध्रुवपद गायन की प्रस्तुति देंगे। गौरव शंकर उपाध्याय पखावज पर संगत करेंगे।

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