Jaipur Jewellery Show : परंपरा, प्रतिभा और व्यापार का संगम

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जयपुर को यूं ही रत्न-आभूषणों की राजधानी नहीं कहा जाता। यह केवल एक ऐतिहासिक शहर नहीं, बल्कि भारत की रत्न-आभूषण परंपरा की जीवंत पहचान है। यहां की गलियों में सदियों से कुंदन-मीना, पोलकी और रंगीन रत्नों की चमक बसी हुई है। इसी गौरवशाली विरासत को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच प्रदान करता है जयपुर ज्वेलरी शो, जो आज केवल एक प्रदर्शनी नहीं, बल्कि भारतीय ज्वेलरी उद्योग की दिशा तय करने वाला आयोजन बन चुका है। जयपुर ज्वेलरी शो की शुरुआत साल 2003 में हुई थी।

उस समय यह एक छोटा आयोजन था जिसमें लगभग 67 बूथ लगे थे। इसका उद्देश्य था जयपुर और भारत के रत्न-आभूषण उद्योग को बढ़ावा देना और व्यापारियों, डिजाइनरों तथा खरीदारों को एक मंच पर लाना। जयपुर ज्वेलरी शो शुरुआती वर्षों में ही अपनी पहचान बनाने लगा। उसके बाद से शो तेजी से बड़ा हुआ — कुछ वर्षों में बूथों की संख्या कई गुना बढ़ी और यह राष्ट्रीय तथा बाद में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त एक प्रमुख ज्वेलरी प्रदर्शनी बन गया।

1 हजार 227 बूथ और 660 एग्जीबिटर्स के साथ अब तक का सबसे बड़ा और सबसे व्यापक एडिशन

आज, जयपुर ज्वेलरी शो देश के सबसे बड़े बीटूबी और बीटूसी ज्वेलरी इवेंट्स में से एक माना जाता है, जिसमें हजारों प्रदर्शक और दुनिया भर से खरीदार आते हैं। जयपुर ज्वेलरी शो का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह ऐसे समय में आयोजित होता है, जब वैश्विक बाजार में भारतीय आभूषणों की मांग लगातार बढ़ रही है। यह शो देश-विदेश से आए ज्वेलर्स, डिजाइनर्स, रत्न व्यापारियों, निर्यातकों और खरीदारों को एक साझा मंच पर जोड़ता है। यहां परंपरागत डिजाइनों के साथ-साथ आधुनिक, हल्के और फैशन-फ्रेंडली आभूषणों की झलक भी देखने को मिलती है। यह बदलाव बताता है कि भारतीय ज्वेलरी उद्योग समय के साथ खुद को ढाल रहा है।

राजस्थान, विशेषकर जयपुर, रंगीन रत्नों के व्यापार का वैश्विक केंद्र माना जाता है। जयपुर ज्वेलरी शो इस पहचान को और मजबूत करता है। माणिक, पन्ना, नीलम से लेकर अर्ध-कीमती रत्नों तक की विशाल श्रृंखला यहां प्रदर्शित होती है। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय खरीदार इस शो का बेसब्री से इंतजार करते हैं। इससे न केवल निर्यात को बढ़ावा मिलता है, बल्कि “मेड इन इंडिया” ज्वेलरी की विश्वसनीयता भी मजबूत होती है।

आर्थिक दृष्टि से देखें तो जयपुर ज्वेलरी शो राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण इंजन है। इससे होटल, परिवहन, पर्यटन और स्थानीय बाजारों को भी लाभ मिलता है। हजारों कारीगरों, शिल्पकारों और छोटे व्यापारियों के लिए यह शो नए अवसरों के द्वार खोलता है। विशेष बात यह है कि यह आयोजन हस्तकला आधारित रोजगार को जीवित रखने में अहम भूमिका निभाता है, जो आज मशीनों और बड़े उद्योगों के दौर में हाशिये पर जाता दिख रहा है।

हालांकि, इस चमक-दमक के पीछे कुछ गंभीर चुनौतियां भी हैं। कच्चे माल की बढ़ती कीमतें, सोने-चांदी के दामों में अस्थिरता, नकली आभूषणों का बाजार और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा उद्योग के सामने बड़ी समस्याएं हैं। इसके अलावा, नई पीढ़ी का पारंपरिक कारीगरी से दूर जाना भी चिंता का विषय है। जयपुर ज्वेलरी शो जैसे मंचों को इन मुद्दों पर केवल चर्चा तक सीमित न रहकर ठोस समाधान और नीतिगत सुझाव देने की दिशा में आगे आना होगा।

आज जरूरत है कि जयपुर ज्वेलरी शो को सिर्फ व्यापारिक आयोजन न मानकर संस्कृति, कौशल और नवाचार के संरक्षण का माध्यम बनाया जाए। कारीगरों के प्रशिक्षण, डिज़ाइन शिक्षा, डिजिटल मार्केटिंग और टिकाऊ (सस्टेनेबल) ज्वेलरी जैसे विषयों को इसमें प्रमुखता मिलनी चाहिए। इससे उद्योग भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार हो सकेगा।

पर्यावरणीय दृष्टि से भी ज्वेलरी उद्योग को आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। जिम्मेदार खनन, नैतिक व्यापार और पर्यावरण-अनुकूल उत्पादन अब विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता बनते जा रहे हैं। जयपुर ज्वेलरी शो यदि इन मूल्यों को प्रोत्साहित करता है, तो यह वैश्विक मंच पर भारत की छवि को और मजबूत करेगा।

कुल मिलाकर, जयपुर ज्वेलरी शो रत्ननगरी की पहचान, कारीगरों की मेहनत और व्यापारिक संभावनाओं का संगम है। यह आयोजन बताता है कि जब परंपरा को नवाचार का साथ मिलता है, तब न केवल आभूषणों की चमक बढ़ती है, बल्कि राज्य और देश की अर्थव्यवस्था भी दमक उठती है। जयपुर ज्वेलरी शो को इसी व्यापक दृष्टि से देखा और विकसित किया जाना समय की मांग है।

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