जयपुर। शारदीय नवरात्र में मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करने वाले श्रद्धालु नवमी को कन्या-बटुक पूजन करेंगे।। ज्यादातर लोग नवमी सोमवार को कन्या पूजन करेंगे। ज्योतिषाचार्य पं. सुरेन्द्र गौड़ ने बताया कि अलग-अलग उम्र की कन्याएं देवी के अलग-अलग रूप को दर्शाती हैं। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्तों का नवरात्र व्रत पूरा होता है। कन्या पूजन में इनकी संख्या कम से कम 9 होनी चाहिए। साथ ही एक बालक भी होना चाहिए। जिसे हनुमानजी का रूप माना जाता है।
जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती है, उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है। यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही है तो कोई आपत्ति नहीं है। मान्यता है कि दो वर्ष की कन्या के पूजन से दु:ख – दरिद्रता दूर होती है। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन और सुख-समृद्धि आती है। चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है। छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। आठ वर्ष की कन्या शांभवी कहलाती है। नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती हैं।