मोमिन ने 150 साल पुरानी सारंगी पर छेड़ी तान

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Momin played the tune on the 150 year old sarangi
Momin played the tune on the 150 year old sarangi

जयपुर। जवाहर कला केंद्र के रंगायन सभागार में आयोजित दो दिवसीय गायन और वादन महोत्सव मधुरम के दूसरे दिन गुरुवार को सुरों और वाद्य यंत्रों का अनूठा संगम मनमोहक छटा बिखेरता नजर आया। विभिन्न बॉलीवुड गीतों में अपनी सारंगी की धुन का जादू बिखेरने वाले मोमिन खान ने एकल वादन प्रस्तुति में 150 साल पुरानी सारंगी पर धुन छेड़ी जिसमें उनकी संगत प्रसिद्ध तबला वादक सत्यजीत तलवलकर ने की। वहीं गज़ल गायक डॉ. सुनील राही ने प्रसिद्ध शायरों की गजलों को अपनी सुरीली आवाज में प्रस्तुत करते हुए माहौल को संगीत के रंगों से सराबोर कर दिया।

राजस्थान में सारंगी की विरासत को आगे बढ़ाते हुए 8वीं पीढ़ी के कलाकार मोमिन खान ने राग बागेश्री से कार्यक्रम की शुरुआत की। इस राग में उन्होंने अपने दादा उस्ताद महबूब खान और पिता पद्मश्री मोइनुद्दीन खान के अंदाज और तानों को जीवंत किया। उन्होंने प्राचीन और आधुनिक तानों के सौंदर्यपूर्ण संयोजन को यहां प्रस्तुत किया। मधुर आलाप के बाद उन्होंने तीन सप्तक का सपाट, बलदार तान, गमक की तान, सुरों की छूट तान, अलग-अलग तिहाईयां बजाकर श्रोताओं का दाद बटोरी। मोमिन ने राग मिश्र पीलू का भी वादन किया।

सारंगी वादन के साथ ठुमरी ‘सईयां बोलो तनिक मोसे रियो न जाए’ का गायन भी मोमिन ने किया। इस अद्भुत प्रस्तुति ने श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। प्रस्तुति में प्रसिद्ध कलाकार सत्यजीत तलवलकर ने तबले पर संगत की।

दूसरी प्रस्तुति में डॉ. सुनील राही ने अपनी सुरीली आवाज में प्रसिद्ध शायरों की ग़ज़लों का गुलदस्ता सजाया। ‘काश ऐसा कोई मंज़र होता, मेरे काँधे पर तेरा सर होता’ से रुमानियत भरी शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने डॉ. सफी हसन की ग़ज़ल ‘मरीज ए इश्क का क्या है जिया न जाए’ गाई।

इसके अलावा शायर मुमताज राशिद की ग़ज़ल ‘फूल है चांद है क्या लगता है, भीड़ में सबसे जुदा लगता है’ पेश की। शाम को और सुरीला बनाते हुए शाहिद अख्तर की ग़ज़ल ‘हाथ में लेकर मेरा हाथ ये वादा कर लो’ गाई। ‘नगमे हैं शिकवे हैं किस्से हैं बातें हैं और हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी’, ‘तू ही रे तेरे बिना कैसे जियूं’ के बाद उन्होंने ‘चंदा रे चंदा रे कभी तो ज़मीं पे आ’ ग़ज़ल के साथ प्रस्तुति का समापन किया।

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