नई दिल्ली। अन्य पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ आयुर्वेद की व्यापक स्वीकृति ने पूरी दुनिया में आयुष क्षेत्र को बढ़ावा दिया है। केंद्र सरकार के अनुमान के अनुसार, भारतीय आयुष क्षेत्र ने 2023 में जो बाजार को हासिल किया है वो 23 बिलियन अमेरिकी डॉलर से कम नहीं है। इसमें अकेले आयुर्वेदिक क्षेत्र में काफी वृद्धि देखी जा रही है। उद्योग विशेषज्ञ इस सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण को देते हैं, जो आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल में आयुर्वेदिक सिद्धांतों को शामिल करने और अनुसंधान को बढ़ावा देने पर बल देते हैं। इस अप्रोच ने आयुर्वेद को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों मोर्चों पर समग्र कल्याण के एक प्रतीक के रूप में रणनीतिक रूप से स्थापित किया है।
पॉली साइंटिफिक आयुर्वेद (पीएसए) के अग्रणी डॉ. रविशंकर पोलिसेट्टी कहते हैं कि, “सरकार का व्यापक नजरिया डोमेस्टिक इनिशिएटिव से कहीं आगे है सरकार आयुर्वेद का प्रचार दुनिया भर में कर रही है। 30 से अधिक देशों द्वारा आयुर्वेद को एक पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता देना कूटनीतिक प्रयासों और सहयोगों का प्रमाण है, जो भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर वैकल्पिक चिकित्सा में अग्रणी के रूप में स्थापित करता है।”
उनका कहना है कि केंद्र के समर्थन से स्टार्टअप्स और चिकित्सा विशेषज्ञों को आयुर्वेद के प्राचीन ज्ञान को आधुनिक तकनीकी विकासों के साथ मिलाकर नए इनोवेशन तैयार करने में मदद मिलेगी।
डॉ पॉलिसेट्टी कहते हैं, “प्रधानमंत्री पहले ही इस बात पर जोर दे चुके हैं कि आयुर्वेद अब केवल विकल्प नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का एक मूलभूत स्तंभ है। उनकी दृष्टि आयुष्मान भारत योजना के तहत राष्ट्रव्यापी रूप से 1.5 लाख स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र स्थापित करने की है, जिनमें से 12,500 केंद्र विशेष रूप से आयुष वेलनेस को समर्पित होंगे ताकि एकीकृत चिकित्सा प्रणालियों को बढ़ावा दिया जा सके। ये विकास भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में जरूरी बदलाव लेकर आएंगे।”
एक बहुमुखी कार्डियक सर्जन, आयुर्वेदिक शोधकर्ता और डेटा वैज्ञानिक, डॉ. पोलिसेट्टी, साई गंगा पनाकिया प्राइवेट लिमिटेड (एसजीपी) और नोवाडिग्म हेल्थ इंक (डेलावेयर) के संस्थापक हैं, जो बायोटेक्नोलॉजी और पर्सनलाइज्ड मेडिसिन काफी जानी मानी कंपनी हैं।