जयपुर। आश्विन पूर्णिमा 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाई जाएगी। शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को रात 8:40 मिनट पर प्रारंभ होगी और 17 अक्टूबर को शाम 4:55 मिनट तक रहेगी। मंदिरों में ठाकुरजी का धवल श्रृंगार किया जाएगा। ठाकुरजी को चांदी के पात्र में खीर का भोग लगाया जाएगा। मान्यता है कि चांद की किरणों में इतनी शक्ति होती है कि वे कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता रखती हैं। आराध्य गोविंददेवजी मंदिर शरद पूर्णिमा महोत्सव पर सुबह ठाकुर श्रीजी का पंचामृत अभिषेक किया जाएगा।
ठाकुर श्रीजी को शरद पूर्णिमा की सुनहरे गोटे की सफेद पार्चा जामा पोशाक धारण कराकर विशेष अलंकार श्रृंगार एवं मुकुट धारण कराया जाएगा। संध्या झांकी बाद महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सान्निध्य में शाम सवा सात से साढ़े सात बजे तक ठाकुर श्रीजी की शरद उत्सव की विशेष झांकी के दर्शन होंगे। ठाकुर श्रीजी को खीर और खीरसा का भोग लगाया जाएगा। ठाकुर श्रीजी के समक्ष शरदोत्सव में विशेष खाट सजाई जाएगी। इसमें शतरंज, चौसर की बाजी सजाई जाएगी। वहीं गाय, धूप दान, इत्र दान, पान दान से खाट को सुसज्जित किया जाएगा।
रास के पदों से ठाकुरजी को रिझाएंगे
समाज श्री सीताराम जी की ओर से छोटी चौपड़ स्थित श्री सीतारामजी मंदिर में 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा। पूरे मंदिर परिसर को फूलों से सजाया जाएगा। मंदिर के महंत नंदकिशोर ठाकुरजी का पंचामृत से स्नान कराकर नई पोशाक धारण कराएंगे।
समाज के मंत्री रामबाबू झालानी ने बताया कि शरद पूर्णिमा की शाम को ही खीर मंदिर के आगे चंद्रमा की रोशनी में रखी जाएगी। समाज के लोग ठाकुर जी को रास, चौपड़ और पासे के पद गाकर रिझाएंगे। रात्रि 11 बजे बाद भक्तों को प्रसाद के रुप में खीर का वितरण किया जाएगा।
यहां भी होंगे आयोजन:
शरद पूर्णिमा पर पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथजी मंदिर, सुभाष चौक स्थित सरस निकुंज, चौड़ा रास्ता के राधा दामोदर, मदन गोपाल, रामगंज बाजार के लाड़लीजी, जगतपुरा स्थित अक्षयपात्र, चित्रकूट स्थित अक्षरधाम, धौलाई स्थित इस्कॉन मंदिर, सहित अन्य सभी मंदिरों में शरद पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन होगा।
मां भक्तों पर बरसाएगी कृपा
ज्योतिषाचार्य डॉ. महेन्द्र मिश्रा ने बताया कि शरद पूर्णिमा को जागरी पूर्णिमा और कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर सवार होकर पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। शरद पूर्णिमा का चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। यह वर्ष की 12 पूर्णिमा तिथियों में सबसे विशेष मानी जाती है। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है, जिसे अमृत काल भी कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है।