जयपुर। बीलवा ,टोंक रोड पर स्थित मालपुर नांगल्या में श्रीराधा सरल बिहारी मंदिर में चल रहे श्रीमद भागवत कथा ज्ञानयक्ष के अंतिम दिन शुक्रचार को भागवत कथा में फूल होली महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर परम श्रद्धेय आचार्य गोस्वामी मृदूल कृष्ण जी महाराज ने होली खेल रहे बांके बिहारी …….. बांके बिहारी को देख छटा मेरे मन है गयो लटा -पटा,,,,,, आदि भजनों को बडे ही भाव के साथ गुनगुनाया । जिसमें आयोजन सरला गुप्ता ,रजनीश गुप्ता व दीपिका गुप्ता सहित हजारों की संख्या में मौजूद श्रद्धालु भाव विभोर होकर नाचे, इस दौरान कार्यक्रम स्थल श्री राधा कृष्ण के रंग में और भक्ति और आस्था के रंग में डूबे नजर आया। इससे पूर्व सुबह शपथ ग्रहण से पूर्व राजस्थान के नवनिर्वावित मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने परम श्रद्धेय आचार्य गोस्वामी मृदुल कृष्ण जी महाराज से आशिर्वाद लिया।
इस अवसर पर भागवत कथा में परम श्रद्धेय आचार्य गोस्वामी मृदुल कृष्ण जी महाराज ने कहा कि जीवन में कितना भी धन ऐश्वर्य की सम्पन्नता हो लेकिन यदि मन में शान्ति नहीं है तो वह व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं रह सकता। वहीं जिसके पास धन की कमी भले ही हों सुख सुविधाओं की कमी हो परन्तु उसका मन यदि शान्त है तो वह व्यक्ति वास्तव में परम सुखी है। यह हमेशा मानसिक असंतुलन से दूर रहेगा।
कथा प्रसंग मे परम भक्त सुदामा चरित्र पर प्रकाश डालते हुए परम श्रद्धेय आचार्य मृदुल कृष्ण महाराज ने कहा कि श्रीसुदामा जी के जीवन में धन की कमी थी, निर्धनता थी लेकिन वह स्वयं शान्त ही नहीं
परम शान्त थे,इसलिए सुदामा जी हमेशा सुखी जीवन जी रहे थे,क्योंकि उनके पास प्रभुनाम रूपी धन था। धन की तो उनके जीवन में न्यूनता थी परन्तु नाम धन की पूर्णता थी। हमेशा भाव से ओत प्रोत होकर प्रभु नाम में लीन रहते थे। उनके घर में वस्त्र आभूषण तो दूर अन्न का एक कण भी नहीं था। जिसे लेकर वो प्रभु श्री द्वारिकाधीश के पास जा सकें,परन्तु सुदामा जी की धर्म पत्नी सुशीला के मन में इच्छा थी, मन में बहुत बड़ी भावना थी कि हमारे पति भगवान श्री द्वारिकाधीश जी के पास खाली हाथ न जाए। सुशीला जी चार घर गई और चार मुट्ठी चावल मांगकर लाई और वही चार मुट्ठी चावल को लेकर श्री सुदामा जी प्रभु श्री द्वारिका धीश जी के पास गए। और प्रभु ने उन चावलों का भोग बड़े ही भाव के साथ लगाया। उन भाव भक्ति चावलों का भोग लगाकर प्रभु ने यही कहा कि हमारा भक्त हमें
भाव से पत्र पुष्प, फल अथवा जल ही अर्पण करता है, तो में उसे बड़े ही आदर के साथ स्वाकार
करता हूँ। प्रभु ने चावल ग्रहण कर श्री सुदामा जी को अपार सम्पत्ति प्रदान कर दी।
आर्चाय श्री ने इस पावन सुदामा प्रसंग पर सार तत्व बताते हुए समझाया कि व्यक्ति अपना मूल्य समझे और विश्वास करे कि हम संसार के सबसे महत्व पूर्ण व्यक्ति है,तो वह हमेशा कार्यशील बना रहेगा। क्योंकि समाज में सम्मान अमीरी से नहीं ईमानदारी और सज्जनता से प्राप्त होता है। हवन व भंडारे के साथ कथा की पूर्णाहुति हुई।