जयपुर। दीपावली पर्व पर इस बार बाजारों में मिट्टी के दीयों और भारतीय सजावटी वस्तुओं की जबरदस्त मांग देखने को मिल रही है। जहां गत वर्षों में दीपावली पर चाइनीज दीये, लाइटें और सजावटी सामानों की जमकर बिक्री हुआ रहा करती थी,वहीं इस बार ग्राहक मिट्टी के दियों,कलश,भारतीय उत्पादों को प्राथमिकता से खरीद रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान का असर जयपुर के बाजारों में साफ दिख रहा है। दीपावली सीजन में कुम्हार लाखों दीये तैयार कर बाजार में बेचा करते थे, वहीं इनकी खपत अब दोगुनी पहुंच गई है।
प्रजापति परिवार को मिला रोजगार
वर्षों से मिट्टी के दिये तैयार कर रहे राकेश कुम्हार ने बताया कि पूरे दीपावली सीजन में वह करीब दो से ढाई लाख दिए तैयार कर लेते हैं। वे एक दिन में करीब 4 से 5 हजार दिए तैयार कर रहे हैं। इस काम को करने के लिए पूरा परिवार एक साथ जुटता है। इस बार बाजार में मिट्टी के दीये की मांग अधिक है। पहले वह करीब 1 लाख दिये तैयार करते थे, लेकिन दीपक की मांग बढ़ने के कारण इस वर्ष उन्होंने करीब ढाई लाख दीपक तैयार किये हैं। उन्होंने बताया कि यह सारे दीये दीपावली के दिन बिक जाएंगे। पिछले कुछ सालों में चाइनीज दीयों की वजह से उनकी बिक्री बहुत कम हो गई थी, लेकिन इस बार लोगों ने फिर से मिट्टी के दीये मांगना शुरू कर दिया है।
ऐसे बनाए जाते है हैं मिट्टी के दीए
कुम्हार राकेश ने बताया कि मिट्टी से दीये व अन्य आइटम तैयार करने में अधिक मेहनत लगती है। बिक्री बढ़ने से इस बार मेहनत का सही मूल्य मिल रहा है। उन्होंने बताया कि मिट्टी से दीये व अन्य आइटम बनाने से पहले मिट्टी को अच्छी तरह तैयार किया जाता है ताकि वह चिकनी, लचीली और मजबूत बने।
इसके लिए नदी या तालाब किनारे की चिकनी मिट्टी ली जाती है। जिसे छानकर उसमें से कंकड़-पत्थर,जड़ें और अन्य अशुद्धियाँ हटाई जाती हैं। इसके बाद में इसमें पानी डालकर गूंथा जाता है ताकि वह मुलायम और लचीली बनी रहे।
मिट्टी को पैरों या हाथों से अच्छे से गूंथकर एकसार किया जाता है। जिसके बाद मिट्टी को कुछ घंटों या रातभर के लिए ढककर रख दिया जाता है। इसके बाद मिट्टी को चाक पर रख दीये, मिट्टी के कलश, धुपाड़ा, अगरबती दान, तवा आदि बनाए जाते हैं।
मिट्टी के दीयों की बढ़ी डिमांड
खरीदारी कर रही महिला विमला देवी का कहना है कि मिट्टी का दीया सिर्फ रोशनी नहीं देता,बल्कि उसमें भारतीय संस्कृति और भावनाओं की गरिमा भी झलकती है। भारतीय संस्कृति में मिट्टी को पवित्र माना जाता है। शादी-विवाह, शुभ कार्य में मिट्टी का महत्व है। देश में मिट्टी के दीयों की चमक हमेशा से भारतीय परंपरा की पहचान रही हैं। चाइनीज उत्पाद भले ही सस्ते हों,लेकिन उनमें वो आत्मीयता और पवित्रता नहीं होती। जो मिट्टी के दीयों में होती है। मिट्टी के दीये पूरी तरह प्राकृतिक होते हैं। उपयोग के बाद इन्हें मिट्टी में मिलाने से कोई हानि नहीं होती। यही कारण है कि इस बार आम लोग, व्यापारी, समाजसेवी, महिलाएं व तमाम संगठन से जुड़े लोग आगे बढ़ दियों की खरीदारी कर रहे हैं।

मिट्टी के दिये और कलश पर विशेष डिजाइन
मिट्टी के दिये कलश तथा अन्य बर्तनों को आकर्षक बनाने के लिए उन पर विभिन्न रंगों के पेंट से आकृतियां बनाई जाती हैं। जिससे यह काफी आकर्षक दिखाई देते हैं। इसके लिए एक विशेष कीप (कोंन) में रंग भरा जाता है। इसके बाद में बहुत ही बारीकी से आकृति उकेरी जाती है।
स्वदेशी वस्तुओं की ओर लौट रहे है लोग
दीया विक्रेता सुरेश कुम्हार ने बताया कि इस बार मिट्टी के दीयों की बिक्री में भारी बढ़ोतरी हुई है। “लोग अब स्वदेशी वस्तुओं की ओर लौट रहे हैं, जिससे हमें अच्छी आमदनी हो रही है।
कुम्हार परिवारों में छाई रौनक
मिट्टी से बने इन दीपावली आइटम्स को तैयार करने के लिए कारीगर एक महीने पहले से ही तैयारी में जुट जाते हैं। उनका पूरा परिवार इस काम में शामिल रहता है — कोई दीये बनाता है, तो कोई रंगाई-सजावट में हाथ बंटाता है।
“इस बार मिट्टी के दीयों की मांग बहुत अधिक है। आमतौर पर 1000 दीयों की थोक कीमत करीब 600 रुपये रहती थी, लेकिन इस बार बढ़ी हुई मांग के कारण भाव 750 रुपये प्रति हजार तक पहुंच गया है।”