जयपुर। नवीन आपराधिक विधियों के तहत राजस्थान पुलिस ने न्याय प्रणाली को तेज, पारदर्शी और नागरिक-केंद्रित बनाते हुए समयबद्ध निस्तारण की नई मिसाल पेश की है। इन कानूनों से संबंधित विभिन्न पहलुओं को सरल और सजीव तरीके से लोगों तक पहुंचाने के लिए ‘नव विधान-न्याय की नई पहचान’ थीम पर जेईसीसी में विशेष प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। प्रदर्शनी में आने वाले लोगों को मॉडल्स के जरिए इन नवविधानों के बारे में विस्तार से जानकारी मिल रही है।
प्रदर्शनी के माध्यम से आमजन में कानूनों के प्रति जागरूकता के साथ साथ विश्वास भी पैदा हुआ है कि आज राज्य पुलिस केवल अपराध से निपटने वाली संस्था नहीं रही- बल्कि यह न्याय, सुरक्षा और जनविश्वास का प्रतीक बन चुकी है। समयबद्ध निस्तारण से लेकर ई-साक्ष्य, साइबर नियंत्रण और मोबाइल फॉरेंसिक तक, हर क्षेत्र में राजस्थान पुलिस ने यह सिद्ध किया है कि तकनीक और निष्ठा के समन्वय से न्याय को न केवल तेज़, बल्कि विश्वसनीय भी बनाया जा सकता है। लोगों को प्रदर्शनी में इन नवविधानों के लागू होने के बाद प्रदेश में कानून व्यवस्था में आए परिवर्तनों के बारे में भी जानकारी मिल रही है।
नवविधानों से त्वरित और सुलभ न्याय का संकल्प हुआ साकार
नवीन आपराधिक विधियों के अंतर्गत दर्ज कुल प्रकरणों में से 80 प्रतिशत का सफलतापूर्वक निस्तारण किया जा चुका है। 10 वर्ष या उससे कम सजा वाले मामलों में 80 प्रतिशत निस्तारण, जबकि 10 वर्ष से अधिक सजा वाले मामलों में 67 प्रतिशत निस्तारण दर्ज किया गया है। लैंगिक अपराधों से जुड़े प्रकरणों में 83 प्रतिशत मामलों का निस्तारण हुआ है तथा न्याय की गति को और तेज करते हुए, निर्धारित समय सीमा के भीतर मामलों के निस्तारण की दर 59 प्रतिशत से बढ़कर 74 प्रतिशत हो गई है, जो त्वरित और सुलभ न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
इसी प्रकार मामलों की जांच में लगने वाला औसत समय भी उल्लेखनीय रूप से घटा है, जहां पूर्व में यह 106 दिन था, वहीं अब यह घटकर 74 दिन रह गया है। नवीन विधिक प्रावधानों के लागू होने से दोषसिद्धि दर भी 48 प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत तक पहुँच गई है, जो साक्ष्य-आधारित और पारदर्शी अन्वेषण प्रणाली का प्रमाण है। गंभीर अपराधों की वैज्ञानिक जांच को सुदृढ़ बनाने के लिए एफएसएल और एमओबी टीमों द्वारा 8,401 घटनास्थलों का निरीक्षण किया गया है। राज्यभर में 56 मोबाइल फॉरेंसिक वाहनों की उपलब्धता से घटना स्थलों पर त्वरित साक्ष्य संकलन संभव हुआ है, जिससे जांच प्रक्रिया और अधिक सटीक एवं प्रभावी बनी है।
राज्य में सकल अपराधों में 23 प्रतिशत की गिरावट—
राजस्थान पुलिस ने संगठित और आर्थिक अपराधों पर निर्णायक प्रहार करते हुए अपराध नियंत्रण की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। राज्यभर में शराब, भूमि, ड्रग माफिया जैसे संगठित अपराधों के विरुद्ध व्यापक अभियान चलाए गए, जिनके परिणामस्वरूप अपराध जगत में स्पष्ट भय और अनुशासन स्थापित हुआ है।
अब तक 715 प्रकरण दर्ज कर 2,500 अभियुक्तों को सलाखों के पीछे भेजा गया है। अपराध से अर्जित संपत्तियों की जब्ती और कुर्की के लिए 308 अभ्यावेदन न्यायालयों में प्रस्तुत किए गए हैं, जिससे अपराधियों के आर्थिक आधार पर सीधा प्रहार हुआ है। इन प्रभावी कार्रवाइयों का ठोस परिणाम राज्य में सकल अपराधों में 23 प्रतिशत की गिरावट के रूप में सामने आया है। यह उपलब्धि पुलिस की सशक्त रणनीति, सूक्ष्म अन्वेषण और अपराध के प्रति शून्य-सहिष्णुता नीति का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
जीरो एफआईआर में 59 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज
राजस्थान पुलिस ने नवीन आपराधिक विधियों के तहत न्याय व्यवस्था को अधिक पीड़ित-केंद्रित और सुलभ बनाने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। अब प्रत्येक मामले में पीड़ित को प्राथमिकता के केंद्र में रखकर पारदर्शी और तत्पर कार्रवाई सुनिश्चित की जा रही है। राज्य में दर्ज जीरो एफआईआर के प्रति जागरूकता और त्वरित कार्रवाई से उल्लेखनीय सुधार हुआ है। नवीन प्रावधानों के अनुपालना से जीरो एफआईआर में 59 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। कुल 1,567 जीरो एफआईआर को नियमित एफआईआर में परिवर्तित किया गया, जबकि अन्य राज्यों से प्राप्त 1,002 एफआईआर को राज्य में विधिवत पंजीकृत किया गया।
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्राप्त शिकायतों पर भी त्वरित प्रतिक्रिया दी जा रही है, अब तक 180 प्रकरण ऑनलाइन माध्यम से दर्ज किए गए हैं। साथ ही, हर पीड़ित को उसके मामले की प्रगति की जानकारी भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से नियमित रूप से उपलब्ध कराई जा रही है, जिससे न्याय प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनी है। राजस्थान पुलिस की यह व्यवस्था न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को सुदृढ़ करती है और यह सुनिश्चित करती है कि हर नागरिक को उसकी शिकायत पर समयबद्ध और निष्पक्ष सुनवाई प्राप्त हो।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुईं 3.6 लाख से अधिक पेशियाँ
राजस्थान पुलिस ने पारंपरिक कार्यशैली से आगे बढ़ते हुए डिजिटल तकनीक को अपनी अन्वेषण और न्यायिक प्रक्रिया का अभिन्न अंग बना लिया है। सूचना-प्रौद्योगिकी आधारित पहल से न केवल कार्यकुशलता बढ़ी है, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही में भी उल्लेखनीय सुधार आया है।i-GOT कर्मयोगी पोर्टल पर पुलिसकर्मियों द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त कर 1 लाख 8 हजार 80 प्रमाणपत्र हासिल किए गए हैं, जिससे डिजिटल दक्षता में वृद्धि हुई है। आपराधिक सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए क्रि-मैक पोर्टल पर 1.68 लाख अलर्ट अपलोड किए गए हैं, जिससे राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपराधियों की निगरानी अधिक प्रभावी बनी है।
मेडलिया पीआर पोर्टल के माध्यम से 14,500 मेडिको लीगल केसों में परीक्षण एवं पोस्टमार्टम रिपोर्टें ऑनलाइन प्राप्त की गईं, जिससे चिकित्सा साक्ष्यों तक तुरंत पहुँच संभव हुई। साक्ष्य प्रस्तुत करने की प्रक्रिया में भी तकनीक के इस्तेमाल से बड़ा परिवर्तन आया है। अब तक 11,580 पुलिसकर्मियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालतों में साक्ष्य दिए, जिससे विभाग को 23 हजार मानव दिवस और लगभग 22 करोड़ रुपए की बचत हुई है। इसके अतिरिक्त, 3.6 लाख से अधिक पेशियाँ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संपन्न की गईं, जिससे 6 लाख मानव दिवस और 175 करोड़ रुपए की अनुमानित बचत दर्ज की गई। इन सभी पहलों ने राजस्थान पुलिस को एक डिजिटल-सक्षम, समय-सचेत और नागरिक-अनुकूल संस्था के रूप में स्थापित किया है।
गुमशुदा मोबाइलों की बरामदगी दर बढ़कर 55 प्रतिशत से अधिक हुई
राजस्थान पुलिस ने साइबर अपराधों के विरुद्ध व्यापक, संगठित और तकनीकी दृष्टिकोण अपनाते हुए देशभर में अग्रणी स्थान प्राप्त किया है। डिजिटल युग के अपराधों पर नियंत्रण के लिए निरंतर निगरानी, त्वरित कार्रवाई और जन जागरूकता के सम्मिलित प्रयासों से उल्लेखनीय सफलता मिली है। अब तक लगभग 2 लाख 25 हजार संदिग्ध मोबाइल सिम कार्ड और लगभग 1 लाख 9 हजार मोबाइल उपकरण ब्लॉक किए गए हैं। राज्य भर में संचालित सतत अभियानों के परिणामस्वरूप साइबर अपराध हॉटस्पॉट क्षेत्रों में दर्ज प्रकरणों की संख्या 89,300 से घटकर 29,727 रह गई है।