जनजाति गौरव वर्ष के अंतर्गत संवाद-प्रवाह, नृत्य नाटिका का मंचन व जनजाति जीवन की दिखी झलक

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Under the Tribe Pride Year, dialogue flow
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जयपुर। जवाहर कला केंद्र की ओर से जनजाति गौरव वर्ष के अंतर्गत सोमवार को विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें लोकनाट्य, लोकनृत्य व संवाद-प्रवाह हुआ। इस मौके पर राजस्थान की आदिवासी परंपरा को लोकनाट्य के माध्यम से दर्शाया गया। इसमें 38 कलाकारों ने ‘जनजाति जीवन दर्शन’ के अंतर्गत प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति में राजस्थान की सम्पूर्ण आदिवासी जीवन शैली को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया।

कार्यक्रम के माध्यम से भील, मीणा, रैबारी, गरासिया, सहरिया, डामोर, कथौड़ी जैसी प्रमुख जनजातियों के जीवन दृश्यों को प्रदर्शित किया गया। उनके विवाह संस्कार, रहन-सहन, खान-पान, आभूषण, पारंपरिक पोशाकों और वेशभूषा के विविध रंगों को नाट्य शैली में दिखाया गया।

रंग-बिरंगे परिधानों, पारंपरिक लोकनृत्यों और आदिवासी संगीत की धुनों ने राजस्थान की जनजातीय संस्कृति को सजीव कर दिया, जिससे दर्शकों को आदिवासी समाज की समृद्ध परंपराओं और जीवन दर्शन की झलक मिली। कार्यक्रम का उद्देश्य है कि राजस्थान की पारंपरिक धरोहर व संस्कृति को संजोकर रखा जा सके जिससे आगे आने वाली पीढ़ी में अपनी जड़ो से जुड़ सके साथ ही संस्कृति का महत्व समझ सके।

वहीं नाट्य प्रस्तुति ‘अपराजिता’ में राजस्थान की महान महिला विभूतियों के पंचतत्व में विलीन होने की गाथा को प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया गया। इस नाटक के माध्यम से उन वीरांगनाओं के संघर्ष, साहस और योगदान को दर्शाया गया, जिन्होंने राजस्थान के इतिहास और संस्कृति को नई दिशा दी।

इनमें वीरता की मिसाल हाड़ी रानी, राजभक्ति की प्रतिमा पन्ना धाय, आत्मसम्मान की प्रतीक रानी पद्मिनी, भक्ति और समर्पण में लीन मीराबाई गाथाओं को नाटय मंचन के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया गया। मंच पर व मंच परे सृष्टि पांडे, डॉ. डॉली मोगरा, उपासना राव, वसुधा, छवि व्यास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लाइव म्यजिक पर देबू खान रहे।

संवाद-प्रवाह में राजस्थानी भाषा और संस्कृति संरक्षण पर हुई चर्चा

जनजाति गौरव वर्ष के अंतर्गत आयोजित संवाद-प्रवाह में सीमा राठौड़, मनोज कुमार स्वामी, डॉ. डॉली मोगरा व राजवीर सिंह चळकोई ने राजस्थानी भाषा को बढ़ावा देने और संस्कृति को संजोने पर अपने विचार प्रस्तुत किए। वक्ताओं ने राजस्थानी वेशभूषा की वैज्ञानिकता, पर्यावरण संरक्षण की भावना, लोक गीत, नृत्य पर चर्चा की।

संस्कृति संरक्षण पर जोर देते हुए, उन्होंने पारंपरिक नृत्य, त्योहारों के गीत और ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही यह सुझाव दिया कि परिवारों को अपने बच्चों को राजस्थानी भाषा में संवाद करने के लिए प्रेरित करना चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ी रह सके।

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