जयपुर। श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही लोगों में पितृपक्ष को लेकर कई तरह की शंकाए मन में आने लगती है। जिसने समाधान के लिए वो पंडित या ज्योतिष के पास भागने लगते है।पितरों का पर्तण करने की सही तिथी क्या है। श्राद्ध क्या है ,कब करें,कैसे करें और किस तिथि को निकालना चाहिए। इस बारे में सारी शंकाओं का समाधान करने के लिए जागो इंडिया जागो ने शहर के विद्वान पंडितों और ज्योतिषाचार्यों से बात की।
इस बारे में पंडित राजेंद्र शास्त्री ने महाभारत की कथा का उदाहरण देते हुए बताया कि जब भीष्म पितामह श्राद्ध पक्ष में नदी में खड़े होकर अपने पिता का श्राद्ध-तर्पण कर रहे थे तब उनके पिता ने स्वयं हाथ बढ़ाकर भोग स्वीकार करना चाहा। लेकिन भीष्म पितामह ने यह कहते हुए उनके हाथ में भोग नहीं दिया कि पिताजी यह वैदिक सिद्धांत नहीं है। वेदों में जो विधि बताई गई है, मैं उसी अनुरूप तर्पण करूंगा। इस पर उनके पिता बहुत प्रसन्न् हुए। पिता ने कहा कि यदि तुम मेर हाथ में पदार्थ देते तो मैं तुम्हें श्राप दे देता। अब मैं तुम्हे आशीर्वाद देता हूं।
श्राद्ध क्या है।
महालय में मुख्यतः दो तरह के श्राद्ध किए जाते
- पार्वण श्राद्ध :जिनकी मृत्यु बिमारी से ,आत्महत्या करने से ,दुर्घटना से या किसी के द्वारा हत्या करने या जिसकी अकाल मृ़त्यु होती है उनके लिए पार्वण श्राद्ध किया जाता है। इस श्राद्ध के तर्पण से पितरों को उनका भोग प्राप्त होता है और वो अपने वंशजों को परेशान नहीं करते।
- एकोदिष्ट श्राद्ध:जिस किसी कि भी मृत्यु हो जाती है उसके 10 वें दिन या 11 दिन इस श्राद्ध को किया जाता है। इस श्राद्ध को करने से संतान दोष से मुक्ति मिलती है। या अतिरिक्त पितरों को प्रसन्न करने के लिए भी इस श्राद्ध को किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर जिनकी नरबली नहीं हो पाती उनके लिए भी एकोदिष्ट श्राद्ध किया जाता है। परंतु कुछ लोग जो मृत्यु के समय सपिण्डन नहीं करवा पाए वे इन दिनों में सपिण्डन भी करवाते हैं ।
जिस श्राद्ध में प्रेत पिंड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन किया जाता है उसे सपिण्डन श्राद्ध कहते हैं । इसी सपिण्डन श्राद्ध को सामान्य बोलचाल की भाषा में पितृ मेलन या पटा में मिलाना कहते हैं।
कब करना चाहिए सपिण्डन
सपिण्डन के विषय में तत्वदर्शी मुनियों ने अंत्येष्टि से 12 वे दिन, तीन पक्ष, 6 माह में या 1 वर्ष पूर्ण होने पर सपिण्डन करने को कहा है । 1 वर्ष पूर्ण होने पर भी यदि सपिण्डन नहीं किया गया है तो 1 वर्ष उपरांत कभी भी किया जा सकता है परंतु जब तक सपिण्डन क्रिया संपन्न नहीं हो जाती तब तक सूतक से निवृत्ति नहीं मानी जाती जिसका उल्लेख गरुड़ पुराण के 13 वे अध्याय में किया गया है और कर्म का लोप होने से दोष का भागी भी बनना पड़ता है ।
श्राद्ध करना क्यों आवश्यक है
इस सृष्टि में हर वस्तु का जोड़ा है सभी चीजें अपने जोड़े की पूरक हैं उन्हीं जोड़ों में एक जोड़ा दृश्य और अदृश्य जगत का भी है और यह दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं । पितृलोक भी अदृश्य जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिए दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है । तो उनकी सक्रियता के निमित्त हमें श्राद्ध करना चाहिए । अर्यमा भगवान श्री नारायण का अवतार हैं एवं संपूर्ण जगत के प्राणियों के पितृ हैं । तो जब हम पितरों के निमित्त कोई कार्य करते है तो वह उन्हे ही प्राप्त होता है।
श्राद्धक्या है_
श्राद्ध पक्ष दो प्रकार के होत है पहला पिंड कि्रया और दूसरा ब्रह्मणभोज
1)पिण्डक्रिया :श्राद्ध में दिये गये अन्न को नाम , गौत्र , ह्रदय की श्रद्धा , संकल्पपूर्वक दिये हुय पदार्थ भक्ति पूर्वक उच्चारित मन्त्र उनके पास भोजन रूप में उपलब्ध होते है ,
2)ब्राह्मणभोजन: श्राद्ध में निमंत्रित ब्राह्मण में पितर गुप्तरूप से प्राणवायु की भांति उनके साथ भोजन करते है , म्रत्यु के पश्चात पितर सूक्ष्म शरीर धारी होते है , इसलिए वह दिखाई नही देते , सूक्ष्म शरीर धारी पितर मनुष्यों से छिपे होते है । धनाभाव में श्राद्ध धनाभाव एवम समया भाव में श्राद्ध तिथि पर पितर का स्मरण कर गाय को घांस खिलाने से भी पूर्ति होती है ।
यह व्यवस्था पद्मपुराण ने दी है , यह भी सम्भव न हो तो इसके अलावा भी , श्राद्ध कर्ता एकांत में जाकर पितरों का स्मरण कर दोनों हाथ जोड़कर पितरों से प्रार्थना करे ।
तिथि के अनुसार करें पितरों को तर्पण
पंडित रमेंश चंद्र शर्मा ने बताए अनुसार सनातन धर्मग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है, वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है, इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है, श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्ष भर तक प्रसन्न रहते हैं।
इतने प्रकार को होते श्राद्ध
वैसे तो श्राद्ध तीन प्रकार के होते है लेकिन आम लोग करते तीन ही प्रकार के है। नित्य नैमितकम,काम्यम त्रिविधम । यम स्मृति में 5 प्रकार तथा विश्वामित्र स्मृति में 12 प्रकार के श्राद्ध का वर्णन है। लेकिन 5 श्राद्ध में ही सबका अंतर्भाव हो जाता है।