जयपुर। भाद्रपद कृष्ण तृतीया गुरुवार को सातुड़ी तीज मनाई गई । इसे कजरी तीज भी कहा जाता है। वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि और पति की दीर्घायु के लिए सुहागिन महिलाओं ने व्रत रखा। तीज से पूर्व बुधवार को सिंजारा मनाया गया। सुहागिनों ने हाथों पर मेहंदी रचाई। गुरुवार को व्रत करने वाली महिलाओं और युवतियों को विशेष पकवान खिलाए गए। ज्योतिषाचार्य पं. पुरूषोत्तम गौड़ ने बताया कि तृतीया तिथि बुधवार को शाम 5.06 बजे शुरू हो गई जो गुरुवार को दोपहर 1.46 बजे तक रहा ।
उदया तिथि के अनुसार कजरी तीज गुरुवार को मनाई गई । विशेष रूप से यह पर्व उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान सहित कई राज्यों में मनाया जाता है। कजरी तीज को कजली तीज, बूढ़ी तीज तीज भी कहा जाता है। सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। रात्रि को चंद्रमा को अघ्र्य देती है।
सिंधी महिलाओं ने की शिव-गौरी की पूजा
सिंधी समाज की महिलाओं ने गुरुवार को टीजड़ी मनाई । पंडित जीतू महाराज ने बताया कि महिलाएं पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए टीजड़ी (मां गौरी )का व्रत रखा । महिलाएं भोर होने से पूर्व उठकर कोकी, मीठी मानी आदि बनाकर अल्पाहार किया, जिसके पश्चात दिन भर निराहार रहकर उपवास रखा । दोपहर में ब्राह्मण के घर जा कर कथा सुनी । टीजड़ी माता को हिंडोले (झूले)में झुलाया । समाज के तुलसी संगतानी ने बताया कि इस मौके पर धान्य रूप में माता की पूजा की जाती है।




















