जयपुर। शादीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से शुरू होने वाले है। इस दिन हर घर में घट स्थापना होती है। जिसके बाद मॉ दूर्गा का पर्व शुरू होगा। पूजा में जवारे बोने का विशेष महत्तव होता है। जवारे में ही छुपा होता है माताा रानी की कृपा के संकेत । इसलिए ज्वारे बोने में कोई गलती नहीं करनी चाहिए।
नवरात्रि में ज्वारे का महत्व
नवरात्रों में जवारे उगाने का विशेष महत्व है। पृथ्वी पर उगाई जाने वाली सबसे पहली फसल जौ को ही माना जाता है। पृथ्वी को मॉ का दर्जा दिया गया है साथ ही धरती पर उगी पहली फसल ज्वारे को भी शास्त्रों में मां का ही एक रूप माना गया है। मान्यता है कि जिस घर में ज्वारे अच्छी तरह से बढ़ते है उन पर माता रानी की विशेष कृपा बनी रहती है।जिस घर में पीले जवारे उगते है या अच्छे से नहीं उगते ,वहां माना जाता है कि माता रानी नाराज है और परिवार पर संकट आने वाला है तथा उस परिवार को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
ये है ज्वारे उगाने का नियम
1. पूजा स्थल पर जौ बोने से पहले स्थान को साफ कर दें। इसके बाद वहां चावल के कुछ दाने डाल दें।
2. एक मिट्टी के सकोरे या कटोरे में ज्वारे उगाए जाते हैं। जवारे उगाने से पहले मिट्टी के पात्र को अच्छी तरह से धो लें। उसके भीतरी तल में स्वास्तिक बना लें।
3. अब इस पात्र में किसी पवित्र नदी की बालू डालें। बालू को अच्छी तरह से छान लें ताकि बालू के बड़े कंकड़-पत्थर निकल जाएं। यदि नदी की बालू नहीं मिल रही तो घर के पास साफ जगह पर थोड़ा गड्ढा खोदकर नीचे से पवित्र मिट्टी निकाल लें।
4. अब बालू में जौ के बीज डालें और अच्छी तरह से फैलाकर बालू से हल्के-हल्के ढंक दें।
5. जिस पात्र में जवारे उगा रहे हैं उसे माता की प्रतिमा के पास स्थापित करना चाहिए और नौ दिनों तक विधि-विधान से पूजन करना चाहिए।
6. ध्यान रखें कि नौ दिनों तक जौ वाले पात्र में नियमित रूप से जल अर्पित करते रहें और इसमें अत्यधिक जल न डालें। सीमित मात्रा में ही जल का छिड़काव करें।
7. तीन दिन में जवारे नजर आने लगेंगे। पांचवें दिन तक अच्छी वृद्धि हो जाएगी। ऐसे में मौली की मदद से उन्हें ढीला बांध दें। इससे जवारे को सपोर्ट मिलेगा और जवारे गिरेंगे नहीं।