जयपुर। राजधानी में इन दिनों शारदीय नवरात्रि का पर्व काफी जोर-शोर से मनाया जा रहा है। इस पर्व को मनाने के लिए बंगाली समाज के लोग भी पीछे नहीं है। कलकत्ता में भी ये पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है। बंगाली समाज के लोग छट से माता दुर्गा की पूजा शुरू करते है। जिसके लिए बंगाली समाज के लोगों ने माता रानी की प्रतिमा को बनाने के लिए विशेष रूप से कलकत्ता से कारीगर बुलवाए है। जो करीब तीन महीने पहले यहां आकर माता रानी की इको फ्रेंडली प्रतिमा बनाने में लगे हुए है।
जयपुर में स्थित लालकोठी सब्जी मंडी के पीछे बसी बंगाली बस्ती में माता दुर्गा की प्रतिमा बनाने का काम जोर शोर से चल रहा है। प्रतिमा बनाने वाले कलाकार मापी पाल ने बताया कि पहले माता दुर्गा की प्रतिमा को विसर्जित करने के लिए जल महल या आमेर के मावठे मे जाना पड़ता था। लेकिन पानी दूषित होने के कारण अब वहां पर मुर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी गई है। लेकिन अब जो प्रतिमा बनाई जा रही है वो काली मिट्टी व बालू रेत से बनाई जा रहीं है। जो पानी में जाते ही उसमें समा जाएगी और कुछ देर बाद ही वो पानी की सतह में बैठे जाएगी ।इससे पानी दूषित भी नहीं होगा।

छट पूजा से शुरू होता है बंगाली का कार्यक्रम
बंगाली समाज के मुखिया विनोद कुमार रॉय ने बताया कि ये पांचवे नवरात्रि में माता रानी को तैयार कर विराजमान करते है । बंगाली समाज के सभी मित्रगण इस दुर्गा पूजा में शामिल होते है और माता रानी की आराधना करते है। छटे नवरात्रि से दशमी तक माता के पूजन का कार्यक्रम चलता है।
दशहरे वाले दिन मां दुर्गा को दान करते है और सभी सुहागन औरते मिलकर पारम्परिक तरीके से माता को सिंदूर लगा कर पूजा करती है। सभी पुरुष नाचते गाते हुए माता को विसर्जित करने के लिए ले जाते है। बंगाली महिलाएं माता रानी को फिर से बुलाने के लिए गीत गाती हुई माता चलती है और अगले साल फिर से खुशियां लेकर आने की विनती करती है।
चार महीने पहले आते है मूर्ति बनाने वाले कारीगर
मूर्ति बनाने वाले कारीगर मापी पाल ने बताया कि हर साल वो नवरात्रि में जयपुर आते है और तीन-चार महीने पहले ही मूर्तियां बनाने के काम में लग जाते है। नवरात्रि में 25 से 30 मूर्तियां बना लेते है।