जयपुर। कालाडेरा इलाके के सबलपुरा में नीलगायों का सिर काटने वाली गैंग का मुख्य सरगना किशन बावरिया करोड़पति निकला।वहीं कभी खेतों में चौकीदारी करता था। किशन बावरिया हिस्ट्रीशीटर और कुख्यात शिकारी बन चुका है।
किशन बावरिया ने पूरे राजस्थान में अपनी गैंग बना रखी है। यह गैंग ऑर्डर मिलने पर शिकार करती है। जयपुर, टोंक, बूंदी, कोटा ही नहीं, प्रदेश के कई अन्य जिलों में इनका नेटवर्क है। गैंग के शिकारी बड़े डीलरों के जरिए होटलों और शादियों में मांस सप्लाई करते हैं। हर जानवर का की कीमत तय है। नीलगाय का मांस 70-100 रुपए किलो, खरगोश 500, तीतर 250 रुपए और सांभर 300 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है। सबलपुरा में 5 नीलगाय के शिकार में नाम सामने आने के बाद पुलिस किशन बावरिया की सरगर्मी से तलाश कर रही है।
9 जनवरी को सबलपुरा गांव में नीलगाय शिकार मामले में कालाडेरा पुलिस ने अबतक गैंग के 2 शिकारियों को दबोचा है। दोनों ने कई राज पुलिस के सामने उगले हैं। थानाधिकारी कमल सिंह ने बताया कि एक आरोपी शैतान सरगना किशन का चचेरा भाई है। पुलिस आरोपी शैतान से किशन के बारे में जानकारी जुटाने में लगी हुई है।चौमूं के सबलपुरा गांव में 5 नीलगायों का शिकार हुआ था, जिसमें किशन बावरिया गैंग का नाम सामने आया था।
पुलिस के अनुसार, सरगना किशन बावरिया टोंक का रहने वाला है। किशन और उसका परिवार पहले चंदलाई के पास टापरी (झोपड़ी) बनाकर रहता था। आसपास के खेतों की रखवाली करते थे। किशन के पास टोपीदार बंदूक से नीलगायों को डराकर खेतों से दूर भगाने की जिम्मेदारी थी। इसी काम को करते-करते किशन शार्प शूटर बन गया। नीलगायों का शिकार कर उनका मांस बेचना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे किशन ने इसे प्रोफेशन बना लिया। इसके बाद किशन ने अपनी गैंग बनाई। टोंक, उनियारा, टोडारायसिंह में नीलगाय का शिकार करने लगे।
तब नीलगाय का शिकार करने पर भी किशन का स्थानीय लोगों ने विरोध नहीं किया, क्योंकि खेतों में नुकसान पहुंचाने के चलते किसान भी नीलगायों से परेशान थे। ऐसे में किशन के हौंसले बुलंद होते रहे। किशन अनपढ़ है। गैंग को बड़ी चालाकी से ऑपरेट करता है। गैंग में परमानेंट लोग कभी नहीं रखता। हर बार सदस्यों को बदलता रहता है। टोंक में ही कई बार शिकार के बाद भी उसका नाम डायरेक्ट कभी सामने नहीं आया। शिकार और मांस की तस्करी कर आरोपी ने करोड़ों की संपत्ति खड़ी कर ली। टोंक में जिन खेतों की वो कभी पहरेदारी करता था, आज वहां 45 बीघा जमीन का मालिक है।
सदर थाने का हिस्ट्रीशीटर, शिकार मामले में हुआ था गिरफ्तार
सरगना किशन टोंक के सदर थाने का हिस्ट्रीशीटर है। सदर थाना एसएचओ बृजमोहन कवैया के अनुसार, किशन को थाने में अवैध रूप से शिकार और मांस बेचने के मामले में गिरफ्तार किया गया था। उसके खिलाफ थाने में पांच मुकदमे दर्ज हैं। इनमें से एक मामला उसके खिलाफ अवैध शिकार और मांस तस्करी का भी है। चार मुकदमे अवैध हथियार के हैं। आखिरी बार उसे 27 दिसंबर 2023 को सदर पुलिस ने गिरफ्तार किया था। तब किशन ने बनास नदी क्षेत्र में 2 गोवंशों और टोडारायसिंह में 12 नीलगाय का शिकार किया था।
मामले में पुलिस ने तीन आरोपियों किशन, राकेश बावरिया और सोराब खां को गिरफ्तार किया था। आरोपियों के पास नीलगाय के मांस का ऑर्डर था, लेकिन नीलगाय नहीं मिली तो बनास नदी में आरोपी किशन ने अपने साथियों के साथ दो गोवंश का का शिकार कर मांस को पैक कर डिलीवर कर दिया था। इस गिरफ्तारी में जमानत पर बाहर आए आरोपी पुलिस पकड़ में नहीं आया है। वह अब तक फरार है।
जयपुर में डीलर, होटलों और शादियों में सप्लाई
किशन जयपुर के कई बड़े डीलर और होटलों में सप्लायर के संपर्क में है। वहां से ऑर्डर मिलने पर शिकार की तलाश में दिनभर रेकी करता और इसके बाद जहां नीलगाय या दूसरे शिकार नजर आते उसे चिह्नित कर लेता। फिर वहां रात में अपनी गैंग के सदस्यों के साथ जाकर खुद शिकार करता। पहले शिकार करने के बाद आरोपी किशन खुद जयपुर में जाकर मांस सप्लाई किया करता था। लेकिन धीरे-धीरे उसका नेटवर्क बड़ा होता गया और वह बडे़ ऑर्डर पर काम करने लगा। अब वह मौके पर ही डीलर से जुड़े लोगों को बुलाकर शिकार किए जानवर का मांस सुपुर्द करने लगा। किशन के बडे़ डीलर जयपुर में हैं, जो होटल और शादियों में नीलगाय का मांस सप्लाई कराते हैं।
टोंक जिले में किशन की गैंग नीलगाय और गोवंशों को लंबे समय से निशाना बना रही है। गैंग ने रानीपुरा इलाके में हिरणों का भी शिकार किया है। आरोपी ग्रामीण इलाकों में ही शिकार को तलाशते हैं, क्योंकि एक तो रात में ग्रामीण जल्दी सो जाते हैं, दूसरा अंधेरा होने के चलते शिकार में आसानी रहती है। आरोपी ने थार और मेजर डीआई जीप भी इसलिए ले रखी है कि भनक लगने पर भागना पड़े तो उबड़-खाबड़ और रेतीले इलाकों में भी आसानी रहे।
टोंक की सदर थाना पुलिस ने पिछले साल जब उसे गिरफ्तार कर पूछताछ की थी तो उसने कई खुलासे किए थे। किशन की गैंग ऑन डिमांड शिकार करती है। किशन ने प्रदेश के अलग-अलग जिलों में नीलगाय, गोवंश व अन्य जानवरों के शिकार की बात कबूली थी। आरोपी किशन अपनी गैंग के साथ मिलकर टोंक, बूंदी, सवाई माधोपुर, नैनवां, पीपल्दा, कोटा के जंगलों में हजारों शिकार किए हैं।
आरोपी सवाई माधोपुर से सांभर, हिरण के लिए बूंदी, कोटा और झालावाड़ के अलावा इटावा में शिकार करता है। चीतल के लिए झालावाड़, बकानी और बूंदी में जाल बिछाता है। दूसरे जिलों में शिकार के लिए किशन, अपनी गैंग से जुड़े अन्य शिकारियों को कॉन्ट्रैक्ट देता है। टोंक और जयपुर जिले में खुद शिकार करता है। वहां शिकार नहीं मिलता तो लोकल शिकारियों से कमीशन पर शिकार करवाता है।
3 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान
नीलगाय शेड्यूल-2 में संरक्षित जीव है। वन्यजीव कानून में जो हाल में संशोधन हुआ है, उसके अनुसार शेड्यूल वन और शेड्यूल टू के जानवरों का शिकार करने पर 3 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।