जयपुर। ठाकुर श्री गोविन्द देव जी के मन्दिर स्थित सत्संग हाल में महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सानिध्य में मीरा बाई के चरित्र पर दिव्य कथा महोत्सव का शुभारंभ हुआ । इस कथा महोत्सव का आयोजन द्वादश ज्योतिर्लिंग कथा महोत्सव प्रबन्ध समिति जयपुर के द्वारा किया जा रहा है कथा का शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर किया गया , सिंद्धपीठ बैनाडा धाम के स्वामी श्री रामदयाल दास जी, महाराज महामण्डलेश्वर एवं विधायक श्री बालमुकुन्दाचार्य महाराज हाथोज धाम द्वारा एवं राष्ट्रीय संघ पचारक श्री डा श्री रमेश चन्द अग्रवाल ने राधा गोविंद देव जी की छवि के समक्ष दीप प्रज्वलित कर विधिवत कथा की शुरुआत कि हुई।
कथा वाचक श्री आशीष जी व्यास शास्त्री, व्यास पीठ से भक्तों को कथा श्रवण करवा रहे हैं । कथा के प्रसंग में आज मीरा का जन्मोत्सव भक्ति भाव के साथ मनाया गया । कथा में आज काले हनुमान मंदिर के महंत गोपाल दास जी महाराज सांसद मंजू शर्मा पूर्व सांसद रामचरण बोहरा श्री श्री 1008 श्री हरिशंकर दासजी वैदाती डहर के बालाजी श्री श्री 1008 श्री चेतराम महाराज श्री मोहन दासजी घाट गेट प्रमुख संतगण, न्यायाधीशगण, मंत्रीगण, प्रशासनिक अधिकारीगण प्रतिनिधी गण ने कथा मे शिरकत की।
कथा से पूर्व समिति के पदाधिकारियों न ने व्यास पीठ की पूजा अर्चना की । कथा प्रतिदिन 12 बजे से 3 बजे तक होगी प्रबन्ध समिति के प्रतिनिधि राम बाबू झालानी ने बताया कि जयपुर में मीरा चरित्र कथा का पहली बार आयोजन हो रहा है । जयपुर शहर भक्तिभाव का शहर है और मीरा बाई भक्त सिरोमणि होने के कारण, जयपुर छोटी काशी के लोगों को विशेष स्नेह प्राप्त होने जा रहा है।
सत्संग हॉल में सभी लोगो के बैठने की समुचित व्यवस्था की गयी है गर्मी को देखते हुए कुलरों पंखों की व्यवस्था की गई है। कथा के प्रसंग में आज मीरा जन्मोत्सव भक्ति भाव के साथ मनाया गया । आज की कथा महाराज श्री ने मीरा के पूर्व जन्म में माधवी स्वरूप गोपी के रूप में श्री कृष्ण से मिलन एवं श्री कृष्ण द्वारा कलिकाल में जन्म लेने और कृष्ण भक्ति करने के वरदान से आरंभ की l
महाराज ने बताया कि माधवी कृष्ण से संयोगवश मिली व और सदैव के लिए उन्हें की हो गईl महाराज ने बताया कि भागवत नाम अपना प्रभाव अवश्य दिखाता है अतः जिस भी स्वरूप में ईश्वर में मन लगे उनके उसी मंत्र को सदैव भजते रहोl जब कोई व्यक्ति रिक्त होकर कथा का श्रवण करता है तभी उसके मन में विरक्ति अर्थात विषयों से दूरी बनती है तभी उसे मोक्ष व ईश्वर की शरणागति प्राप्त होती है l अपने जीवन में मोह का त्याग करना ही मोक्ष हैl
महाराज ने बताया कि माधवी को दिए गए वरदान स्वरुप 1561 में अश्विन काल में शुक्ल पूर्णिमा को मीराबाई का जन्म रतन सिंह जी व रानी झाली के घर में मेवाड़ में हुआl मीराबाई का प्रकट होना स्वाभाविक ना होकर एक शंख ध्वनि के साथ हुआl इस घटना का विवरण जब ज्योतिषाचार्य को बताया तो उन्होंने कहा कि यह एक अस्वाभाविक कन्या है और यह भविष्य में गृहस्थ भी होगी और भक्त भी होगी और लोग युगों युगों तक इनको व उनकी भक्ति को याद करेंगे आज भी लोग मीरा का नाम बड़े आदर से लेते हैंl
मीराबाई बचपन में अपने दादाजी के साथ रहती थीl कहीं भी कथा श्रवण करना या किसी यात्रा पर जाना वे सभी स्थानों पर जिज्ञासा वशअपने दादा से विभिन्न प्रश्न पूछ करती व ठाकुर का गुणगान व कथाएं सुनकर बड़ी प्रसन्न होती थीl
महाराज श्री ने बताया कि किसी भी तीर्थ पर जाओ तो पहले उसके बारे में जाने, उस तीर्थ की कथाओं का श्रवण करो, फिर वहां जाओ तो उस तीर्थ में अनुराग व प्रेम बढ़ता है वह आपकी भक्ति पुष्ट होती हैl कालांतर मे भगवत कृपा से एक संत द्वारा गिरधर गोपाल का विग्रह प्राप्त हुआ ,जिनकी आराधना वह निश्चल व समर्पित भाव से करती थी l इसी प्रेमवश निवृत्ति नाथ जी ने उन्हें योग सिखाया l
मीरा ने संगीत की शिक्षा भी ग्रहण की l आज की कथा में महाराज श्री ने निष्कर्ष के रूप में बताया कि समर्पित एवं निश्चल भाव से और सच्ची लगन से किसी कार्य को करो तो गुरु व भगवान स्वयं आपके पास आकर आपके उस कार्य को सिद्ध करने की प्रेरणा तो देते ही है, अपितु उसे कार्य को स्वयं उपस्थित रहकर सिद्ध करते हैंl