जयपुर। आषाढ़ी अमावस्या पर मृगशिरा नक्षत्र का संयोग होने से सर्वार्थ सिद्धी योग बना। जिससे अमावस्या का महत्व ओर बढ़ गया। इस शुभ अवसर पर मृगशिरा नक्षत्र में अल सुबह से शहर भर के प्रमुख गणेश मंदिरों में प्रथम पूज्य का दुग्धाभिषेक किया गया। अल सुबह 5 बजे से ही गणेश मंदिरों में भक्तों का तांता लग गया जो दोपहर 1 बजे तक जारी रहा। मृगशिरा नक्षत्र में मोती डूंगरी गणेश मंदिर,परकोटा गणेश मंदिर,श्वेत सिद्धी विनायक गणेश सहित कई मंदिरों में गणेश जी महाराज का दूग्धभिषेक किया गया।
सिद्धी विनायक के साथ रिद्धि-सिद्धि मुषक देव है विराजमान
सूरजपोल बाजार स्थित श्वेत सिद्धी विनायक मंदिर में बुधवार सुबह 5 बजे से श्रद्धालुओं की कतार लग गई और सभी ने बारी-बारी से भगवान गणेश का दुग्धभिषेक किया। जो दोपहर 1 बजे तक जारी रहा। जिसके पश्चात प्रथम पूज्य को नवीन पोशाक धारण कराई गई। शहर का मात्र एक ऐसा मंदिर है जिसमें सिद्धी विनायक के साथ रिद्धि-सिद्धि मुषक देव भी विराजमान है।
गौरतलब है कि इस मंदिर का निर्माण 2 सौ साल पहले हुआ था। यहां गणेश प्रतिमा पर सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता है। केवल दूध और जल अभिषेक किया जाता है। बताया जाता है कि जयपुर महाराजा रामसिंह गलता तीर्थं से स्नान करके लौटते थे तो वो श्वेत सिद्धि विनायक का दुग्धअभिषेक करते थे। जिसके पश्चात ही वो राजकार्य शुरु करते थे। इस मंदिर का निर्माण पुष्य नक्षत्र की बसंत पंचमी को हुआ था। ये पूर्व मुखी गणेश मंदिर है।
तत्काल फल देने वाली है गणेश प्रतिमा
बताया जाता है कि प्रथम पूज्य गणेश और रिद्धि -सिद्धि के हाथों में सोने के कलश है और ये प्रतिमा तांत्रिक प्रतिमा है। जो तत्काल फल देने वाली है। ऐसी मान्यता है कि सात बुधवार लगातार प्रथम पूज्य के दर्शन करने मात्र से उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। बताया जाता है सूर्य की पहली किरण प्रथम पूज्य के चरणों में अभिषेक करती है। इस प्रतिमा की स्थापना तांत्रिक विधि-विधान से की गई है। गणेश जी महाराज के पांच सर्पों का बंधेज है और चारो भुजाओं पर सर्पाकार मणिबंध के साथ पैरों में पैजनी है। प्रथम पूज्य ने सर्प की ही जनेऊ धारण की हुई है।