जयपुर। सनातन धर्म और आस्था का सबसे बड़ा संगम प्रयाग महाकुंभ है। कुंभ अर्थात् संचय करना। कुंभ का कार्य है सभी को अपने में समाहित कर लेना, नानत्व को एकत्व में ढाल देना, जो ऊबड़-खाबड़ है उसको भी आत्मसात कर आकार दे देना। घट में अवघट का अस्तित्व विलीन हो जाये तब घट अर्थात कुंभ की सार्थकता है। लोक हमेशा अमृत के कुंभ की स्मृति रखता है। हमारे विचार, हजारों पदार्थ, इस कुंभ में समाकर अमर हो जाते हैं।
यह कुंभ नहीं महाकुंभ है। यह देश का महाकुंभ है। हमारी अस्मिता का महाकुंभ है। संस्कृति का महाकुंभ है। सनातन धर्म का महाकुंभ है। एक घट में सर्वस्व समाहित है। देव और दानवों के मंथन के दौरान समुद्र से निकले अमृत कुंभ की रक्षा सूर्य, चन्द्र, गुरू और शनि के विशेष प्रयासों से हुई थी। चन्द्रमा ने कुंभ को गिरने से, सूर्य ने फूटने से, वृहस्पति ने दैत्यों से तथा शनि ने इन्द्रपुत जयंत के भय से रक्षा की थी।
अमृत कलश से बिन्दु पतन के दौरान जिन राशियों में सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, और शनि की स्थिति थी उन्हीं राशियों में इनके होने पर कुंभ होता है। सूर्य चन्द्र के मकर राशि में तथा चन्द्रमा के साथ गुरू वृष राशि में बारह वर्ष बाद आता है। यह कुंभ प्रयाग में पड़ता है। शनि का योग महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि हजार अर्श्वमेध यज्ञ तथा सौ वाजपेय यज्ञ करने तथा लाख बार भूमि की प्रदक्षिणा करने कार्तिक में हजार बार स्नान करने माघ में सौ बार स्नान करने तथा बैशाख में करोड़ बार नर्मदा में स्नान करने का जो महाफल प्राप्त होता है वह महाकुंभ में एक बार स्नान मात्र से ही प्राप्त हो जाता है।
कहा जाता है कि सम्राट हर्षवर्द्धन के समय प्रयाग के संगम क्षेत्र में प्रत्येक पांचवें वर्ष एक समारोह का आयोजन होता था जिसे महामोक्ष परिषद् कहा गया है। इसमें 18 अधीन देशों के राजा सम्मिलित हुए थे। यह समारोह लगभग ढाई महीने तक चला। सम्राट ने बारी बारी से महात्मा बुद्ध भगवान सूर्य तथा शिव प्रतिमाओं की पूजा की थी। प्रयाग के इस धार्मिक समारोह के अवसर पर वह गरीबों में दान भी किया करता था। यहां तक कि व्यक्तिगत आभूषणों तक को दान कर देता था। महाकुंभ की शुरुआत कब से हुई यह शोध का विषय है।
इस पर तर्क वितर्क हो सकते हैं लेकिन यह महाउत्सव शाश्वत रूप से चलता रहेगा यह सुनिश्चित है। इस महाकुंभ के हम साक्षी हैं। आने वाले का कोई और बनेगा। भारत के महाकुंभ में नवीन विचारों के आगमन का सिलसिला नदियों की धारा के साथ प्रवाहमान होता रहेगा। नये नये दर्शनों से महाकुंभ भरता रहेग। यह आस्था है जो व्यक्ति को व्यक्ति के निकट लाती है। यह उत्सव है जो व्यक्ति को समाज से जोड़ता है।
ये विचार आज प्रयागराज में सेक्टर आठ में मेंहदीपुर बालाजी धाम के कैंप में सनातन और महाकुंभ पर आयोजित परिचर्चा में सामने आए। इस अवसर पर आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि प्रयागपुत्र राकेश के शुक्ला रहे । इस अवसर महंत डॉ नरेश पूरी महाराज ने कहा की प्रयागराज में महाकुंभ में आना ही बड़ी बात है। जीवन में इससे बड़ा कुछ हो नहीं सकता। इस अवसर संस्कृति युवा संस्था के संस्थापक अधक्ष्य पंडित सुरेश मिश्रा ने कहा की महंत डॉ नरेश पूरी महाराज ने मेहंदीपुर बालाजी धाम में कार्यभार सम्भाला है तब से सनातन और संस्कृति के लिए अनवरत कार्य कर रहे है और सामाजिक सरोकार के हर कार्य में आप अग्रणी रहते है।
प्रयागराज में भी अनशेत्र के माध्यम से हजारों लोगों को भोजन हर रोज वितरण किया जा रहा है। कार्यक्रम में महंत डॉ. नरेशपुरी महाराज ने कहा कि “वसुधैव कुटुम्बकम” भारत के चिन्तन का आधार है। उन्होंने बताया की उनका उद्देश्य विश्व में श्री बालाजी महाराज की चमत्कारिक शक्तियों से जनमानस को लाभ पहुंचाना हैं। इसके साथ ही उन्होंने सभी लोगो से श्री हनुमान महाराज के चरित्र को पढ़ने का आग्रह किया।
कार्यक्रम में प्रयागपुत्र राकेश के शुक्ला, संस्कृति युवा संस्था के अध्यक्ष पंडित सुरेश मिश्रा, यज्ञ फाउंडेशन के अध्यक्ष गोविंद नारायण पारीक, संत समिति, राजस्थान के अध्यक्ष सियाराम दास महाराज, संयुक्त भारतीय धर्म संसद के अध्यक्ष आचार्य राजेश्वर, पंचमुखी हनुमान महंत रामराज दास और पंडित राजकुमार चतुर्वदी ने सनातन श्री सम्मान पत्र भेंट किया।