जयपुर। हरिनाम संकीर्तन के माध्यम से घर-घर में भगवद् भक्ति का प्रचार-प्रसार करने के संकल्प के साथ श्री माध्व गौड़ेश्वर मंडल की ओर से गौरांग महाप्रभु जी के 539वां जन्मोत्सव संपन्न हुआ। फाल्गुन पूर्णिमा 14 मार्च को चौड़ा रास्ता स्थित दामोदरजी मंदिर में षडभुज प्रभुजी के महाभिषेक के साथ शुरू हुए जन्मोत्सव का समापन 66 वें आयोजन के रूप में चैतन्य सम्प्रद्रायाचार्य जगद्गुरु पुरुषोत्तम गोस्वामी जन्म महोत्सव के साथ हुआ।
गोविंद देवजी मंदिर के महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सान्निध्य मेेंं यह आयोजन त्रिपोलिया बाजार स्थित मंदिर श्री राधा विनोदी लालजी में हुआ। ठाकुरजी के दरबार में गौरांग महाप्रभु की चित्रपट झांकी सजाकर हरिनाम संकीर्तन के साथ भजनों की सरस प्रस्तुतियां दीं गईं। आयोजन से जुड़े राधा मोहन नानूवाला ने बताया कि बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव से संकीर्तन किया। श्री राधा विनोदी लालजी मंदिर प्रबंधन की ओर से श्रद्धालुओं का स्वागत किया गया।
गौरांग महाप्रभु जन्मोत्सव के अंतर्गत छोटीकाशी के सभी प्रमुख मंदिरों में हरिनाम संकीर्तन का आयोजन किया गया। वहीं श्रद्धालुओं के घरों में भी हरिनाम संकीर्तन हुआ। शोभायात्रा, पदयात्रा, पाटोत्सव सहित अन्य आयोजन भी हुए। इसी कड़ी में चौड़ा रास्ता स्थित राधा दामोदरजी मंदिर में श्रीमन् माधव गौड़ेश्वर संप्रदाय आचार्य वासुदेव गोस्वामी महाराज का जन्मोत्सव मनाया गया। पुरानी बस्ती स्थित मंदिर श्रीगोपीनाथजी, आमेर रोड बलदेवजी के मंदिर, मंगोडी वालों की बगीची, गलता गेट स्थित देश भूषण नगर में जयंती महोत्सव के अंतर्गत संकीर्तन भजन संध्या और उछाल हुई।
इनके अलावा चौड़ा रास्ता स्थित मंदिर श्री मदनगोपालजी, सिरह ड्योढ़ी बाजार स्थित मंदिर श्री कल्किजी, चांदपोल बाजार स्थित रामचंद्रजी मंदिर, त्रिपोलिया बाजार स्थित श्री विनोदीलालजी, कल्याणजी का रास्ता स्थित मंदिर श्री कल्याणजी में भी कार्यक्रम हुए। त्रिपोलिया बाजार स्थित विनोदलालजी मंदिर में अभिनव भागवत हुई। करीब दो माह में चले आयोजन में 6600 लोगों ने भागीदारी की।
विलुप्त वृंदावन को फिर से बसाया :
गौरतलब है कि चैतन्य महाप्रभु वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक और भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। गौर वर्ण के होने के कारण इन्हें गौरांग महाप्रभु भी कहा जाने लगा। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी, भजन गायकी की एक नई शैली को जन्म दिया तथा राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में सद्भावना को बल दिया। जात-पात, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृंदावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। यह भी कहा जाता है कि यदि गौरांग न होते तो वृंदावन आज तक एक मिथक ही होता।