जयपुर। आज जयपुर में लाखों श्याम भक्त, सैकड़ों श्यामसेवी संस्थाएं और एक दर्जन से अधिक श्याम प्रभु के मंदिर हैं, लेकिन करीब 60-65 साल पहले छोटीकाशी में श्याम प्रभु को जानने वाले लोग बहुत कम थे। पं. गोकुलचंद्र मिश्र पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने जयपुर में श्याम प्रभु के मंदिर की स्थापना की और घर-घर में बाबा की ज्योति जगाई। पं. गोकुलचंद्र मिश्र ने कई वर्षों तक खाटूधाम में बाबा के निज मंदिर में समर्पित भाव से पूजा-अर्चना की। वे खाटूधाम के प्रथम पुजारी थे।
कई सालों तक खाटूधाम में श्याम बाबा की सेवा करने के बाद अस्वस्थता के कारण जयपुर चले आए, किंतु जिस प्रकार दीपक को लौ से, खुशबू को चंदन से अलग नहीं किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार भक्त को भगवान से अलग नहीं किया जा सकता। गोकुलचंद मिश्र जयपुर जरूर आए, लेकिन उनका हृदय खाटू में श्याम बाबा के चरणों में लगा रहा। घंटों तक वे रामगंज बाजार के कांवटियों का खुर्रा स्थित अपने निवास स्थान पर श्याम बाबा की भक्ति में लीन रहते थे। उस वक्त श्याम बाबा को जयपुर में बहुत कम लोग जानते थे।
सन् 1966 में शुरू की नियमित सेवा:
पं. गोकुलचंद मिश्र ने सर्वप्रथम श्याम बाबा की ज्योति जगाई। अपने कुछ मित्रों आलूसिंह (निज मंदिर खाटूधाम), राधेश्याम सर्राफ, देवीसहाय खाटूवाले और मांगीलाल सारड़ा के साथ मिलकर उन्होंने वर्ष 1966 में अपने निवास स्थान कांवटियों का खुर्रा, रामगंज बाजार में श्री श्याम प्राचीन मंदिर में श्याम प्रभु की नियमित सेवा प्रारंभ की। श्री श्याम प्रभु की भक्ति के मार्ग पर चलने वाले जयपुर के पहले व्यक्ति पं. गोकुलचंद्र मिश्र ने प्रभु की भक्ति में लीन होकर ईश्वर प्रेम में सब कुछ समर्पित कर दिया। धीरे-धीरे उनके द्वारा जगाई गई ज्योति को भक्तों के दिलों में पहुंचाने के लिए श्री श्याम सत्संग मंडल की स्थापना की गई। इसके फलस्वरूप आज संपूर्ण जयपुर में इस ज्योति का प्रकाश दैदीप्यान हो रहा है।
पूरे जयपुर में फैली शाखाएं:
इस मंडल की अनेक शाखाएं- प्रशाखाएं पूरे जयपुर में फैल चुकी हैं। पं. गोकुलचंद मिश्र के पौत्र तथा मंदिर के महंत पं. लोकेश मिश्रा ने बताया कि चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मंदिर का पाटोत्सव मनाया जाता है। फाल्गुन सुदी पंचमी को निशान पूजन और फाल्गुन सुदी छठ को पदयात्रा जाती है। यह जयपुर की सबसे पुरानी पदयात्रा के साथ सबसे विशाल पदयात्रा भी है। श्री श्याम प्राचीन मंदिर और श्री श्याम सत्संग मंडल संस्था के नेतृत्व में एकादशी, पूर्णिमा और अमावस्या को मंदिर में कीर्तन होता है।