May 21, 2025, 1:18 pm
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सुदामा की मित्रता भगवान के साथ निस्वार्थ थी: लाल भाई

जयपुर। आदर्श नगर के श्रीराम मंदिर में चल रहे श्रीमद भागवत सप्ताह परायण ज्ञानयज्ञ के तहत मंगलवार को व्यास पीठ से श्रीधाम मथुरा,वृंदावन वाले आचार्य लाल भाई बिहारी ने भगवान श्री द्वारकानाथ के विवाह प्रसंग के बाद सुदामा चरित्र की कथा सुनाई,जिसे सुन श्रद्धालु भाव विभोर हो उठे।

महाराज ने कृष्ण-सुदामा चरित्र पर बोलते हुए कहा कि कहा कि ‘स्व दामा यस्य सरू सुदामा’ अर्थात अपनी इंद्रियों का दमन कर ले वही सुदामा है। सुदामा की मित्रता भगवान के साथ निःस्वार्थ थी, उन्होंने कभी उनसे सुख साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की, लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गए, चावलों में भगवान श्री कृष्ण से सारी हकीकत कह दी और प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सब कुछ प्रदान कर दिया। भागवत ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा मे सुदामा चरित्र का वाचन हुआ तो मौजूद श्रद्धालुओं के आखों से अश्रु बहने लगे।

उन्होंने आगे बोलते हुए कहा कि श्रीसुदामा जी के जीवन में धन की कमी थी, निर्धनता थी लेकिन वह स्वयं शांत ही नहीं परम शान्त थे। इसलिए सुदामा जी हमेशा सुखी जीवन जी रहे थे,क्योंकि उनके पास ब्रह्म (प्रभुनाम) रूपी धन था। धन की तो उनके जीवन में न्यूनता थी परन्तु नाम धन की पूर्णता थी। हमेशा भाव से ओत प्रोत होकर प्रभु नाम में लीन रहते थे। उनके घर में वस्त्र आभूषण तो दूर अन्न का एक कण भी नहीं था।

जिसे लेकर वो प्रभु श्री द्वारिकाधीश के पास जा सकें,परन्तु सुदामा जी की धर्म पत्नी सुशीला के मन में इच्छा थी, मन में बहुत बड़ी भावना थी कि हमारे पति भगवान श्री द्वारिकाधीश जी के पास खाली हाथ न जायं। सुशीला जी चार घर गई और चार मुट्ठी चावल मांगकर लाई और वही चार मुट्ठी चावल को लेकर श्री सुदामा जी प्रभु श्री द्वारिका धीश जी के पास गए। और प्रभु ने उन चावलों का भोग बड़े ही भाव के साथ लगाया।

उन भाव भक्ति चावलों का भोग लगाकर प्रभु ने यही कहा कि हमारा भक्त हमें भाव से पत्र पुष्प, फल अथवा जल ही अर्पण करता है, तो में उसे बड़े ही आदर के साथ स्वाकार करता हूँ। प्रभु ने चावल ग्रहण कर श्री सुदामा जी को अपार सम्पत्ति प्रदान कर दी। आर्चाय श्री ने इस पावन सुदामा प्रसंग पर सार तत्व बताते हुए समझाया कि व्यक्ति अपना मूल्य समझे और विश्वास करे कि हम संसार के सबसे महत्व पूर्ण व्यक्ति है। तो वह हमेशा कार्यशील बना रहेगा,क्योंकि समाज में सम्मान अमीरी से नहीं इमानदारी और सज्जनता से प्राप्त होता है।

जीवन में सच्चे मित्र बनाने चाहिए,संकट में काम आने वाला ही मित्र है। जीवन में अवसरवादी व चाटुकारी मि़त्रों से बचो। उन्होंने कहा कि श्री कृष्ण भक्त वत्सल हैं सभी के दिलों में विहार करते हैं जरूरत है तो सिर्फ शुद्ध ह्रदय से उन्हें पहचानने की। मनुष्य की आकांक्षाएं हमेशा बढ़ती है, जिसके कारण उसे दुख का सामना करना पड़ता है।

असुर हमेशा महत्वकांक्षा के चलते जलन में ग्रस्त रहे, जिसके कारण सामाजिक व्यवस्था उथल पुथल हुई। उथल पुथल को खत्म करने के लिए ही देवी ने अवतार लिया। उन्होंने संकल्प करवाया कि वे अगर जीवन में सुखमय व्यतीत करना चाहते हैं तो उन्हें धार्मिक प्रवृत्ति धारण करनी होगी। कथा के आयोजक जय प्रकाश शर्मा व सुषमा शर्मा ने बताया कि महोत्सव के अंतिम दिन बुधवार को हवन पूर्णाहुति व सुंदर कांड के पाठ होंगे।

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