जयपुर। जवाहर कला केन्द्र की ओर से जारी 27वें लोकरंग का रंग कला प्रेमियों पर चढ़ रहा है। त्योहारी सीजन में हस्तशिल्प उत्पाद खरीदने बड़ी संख्या में शिल्पग्राम में लोग आ रहे हैं। यहां मुख्य मंच पर मांगणियार गायन, लोक नृत्य, कालबेलिया, मोरचंग, चकरी, जादू और मयूर नृत्य की प्रस्तुति ने आगंतुकों का भरपूर मनोरंजन किया। रंग चौपाल पर पद दंगल गायन हुआ। मध्यवर्ती के मंच पर तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, गोवा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और झारखंड के कलाकारों ने प्रस्तुति दी।
मध्यवर्ती में हल्की ठंडी हवाओं के बीच तमिलनाडु के कलाकारों की थपट्टम नृत्य की प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। अरुणाचल प्रदेश के कलाकारों ने सौम्य लय वाला रिखमपदा नृत्य पेश किया। यह नृत्य लव डांस के नाम से प्रसिद्ध है। हर समारोह में स्वागत स्वरूप यह नृत्य किया जाता है। राजस्थानी कलाकारों ने चकरी नृत्य पेश किया।
कंजर जनजाति की महिला कलाकार विशेष वेशभूषा जिसमें अस्सी कली का घाघरा, ओढ़नी आदि शामिल है पहनकर यह नृत्य करती हैं। अहमदाबाद के कलाकार भरत राव ने गुजराती भवाई के रूप में प्रसिद्ध केरबा नो वेश की प्रस्तुति दी जिसमें घूमते हुए कपड़े से मोर, बतख की आकृतियां साकार की। भपंग की धुन ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
उत्तराखंड से आए कलाकारों ने एशिया की सबसे लंबी और ऊंचाई पर होने वाली नन्दा देवी राज जात का दृश्य मंच पर साकार किया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पार्वती को पर्वत राज हिमालय की पुत्री माना जाता है जिन्हें नन्दा देवी के रूप में पूजा जाता है। नन्दा देवी को डोली में बिठाकर विदा किया जाता है। धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत इस यात्रा की छवि मध्यवर्ती में देखने को मिली। बुंदेलखंड के कलाकारों ने बधाई नृत्य की प्रस्तुति दी।
झारखंड से आए कलाकारों ने रोमांचित करने वाली पुरुलिया छऊ नृत्य की प्रस्तुति दी। मुखौटे लगाए कलाकारों ने बीच-बीच में जो कलाबाजी की उसने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। कृष्ण रंग में रंगने वाले गुजरात के डांडिया रास की प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।